माँ रोज-रोज मरती है…

डॉ. वसुधा कामत बैलहोंगल(कर्नाटक) ******************************************************************* माँ तो माँ होती है, फिर भी पराया धन कहलाती है। रोज-रोज करती है, हँसते-हँसते सबकी सेवा सबके लिए जीती है। कभी इच्छा जताती नहीं, अपमान सहन करती है फिर भी मुख पर, स्मित हास्य रखती है, भूखे पेट सो जाती है। सुनती सबकी,कहा-सुनी फिर भी करती मिन्नतें, हजार सबके … Read more

आज कोई रुठ गया

डॉ. वसुधा कामत बैलहोंगल(कर्नाटक) ******************************************************************* आज कोई रुठ गया, उसका साल अब चला गया उसके नयन भीगे थे, सिसकियाँ लेकर कहता वो बार-बार- `ना जाने मैंने कौन-से ऐसे कर्म किये, आखिर में सबने मुझे अलविदा कहाl` मैंने भी मुस्कुराते अलविदा करते सबसे कहा- `भूल जाना गर मैने गम दिये हों तो, भूल जाना गर मैंने … Read more