कुल पृष्ठ दर्शन : 287

You are currently viewing आज कोई रुठ गया

आज कोई रुठ गया

डॉ. वसुधा कामत
बैलहोंगल(कर्नाटक)
*******************************************************************

आज कोई रुठ गया,
उसका साल अब चला गया
उसके नयन भीगे थे,
सिसकियाँ लेकर
कहता वो बार-बार-
`ना जाने मैंने
कौन-से ऐसे कर्म किये,
आखिर में
सबने मुझे अलविदा कहाl`
मैंने भी मुस्कुराते
अलविदा करते
सबसे कहा-
`भूल जाना गर
मैने गम दिये हों तो,
भूल जाना गर
मैंने दिल दुखाया हो तो,
बस याद रखना
मेरी अच्छी बातेंl
मेरे साथ गुजारे थे
वो अच्छे लम्हें,
मैं फिर आऊँगा
एक नये विचार के साथ,
एक नये साल के साथl
वही हफ्ते होंगे,
वही महीने होंगे
वही तारीखें होंगी,
सिर्फ़ २०१९ की
पोषाक उतारकर,
२०२० की पोषाक पहनकर
रुठे हुए को मनाने,
कुछ के अधूरे
सपने पूरे करने,
मैं फिर आऊँगा
तुम सबको हँसाने के लिए,
आज रुठ गया था मैं
पर अब मैं मान गया,
जो बीत गया,सो बीत गयाll

परिचय-डॉ. वसुधा कामत की जन्म तारीख २ अक्टूबर १९७५ एवं स्थान दांडेली है। वर्तमान में कर्नाटक के जिला बेलगाम स्थित बैलहोंगल में आपका बसेरा है। हिंदी,मराठी,कन्नड़ एवं अंग्रेज़ी सहित कोंकणी भाषा का भी ज्ञान रखने वाली डॉ. कामत की पूर्ण शिक्षा-बी.कॉम, कम्प्यूटर (आईटीआई) सहित एम.फिल. एवं पी-एच.डी. है। इनका कार्य क्षेत्र सह शिक्षिका एवं एन.सी.सी. अधिकारी का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत समाज में जारी गतिविधियों में भाग लेना है। इनकी लेखन विधा-कविता,आलेख,लघु कहानी आदि है। प्रकाशन में ‘कुछ पल कान्हा के संग’ है तो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में मुक्त भाव की कई रचनाएँ आ चुकी हैं। डॉ. कामत को भगवान बुध्द फैलोशिप पुरस्कार सहित ज्ञानोदय साहित्य पुरस्कार,रचना प्रतिभा सम्मान,शतकवीर सम्मान तथा काव्य चेतना सम्मान आदि मिल चुके हैं। इनके अनुसार डॉ. सुनील परीट का मार्गदर्शक होना विशेष उपलब्धि है। लेखनी का उद्देश्य-पाठकों को प्रेरणा देना और आत्म संतुष्टि पाना है। हिंदी के कई मंचों पर हिंदी का ही लेखन करने में सक्रिय डॉ. वसुधा कामत के लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-कबीर दास जी एवं मुंशी प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज-डॉ. परीट,संत कबीर दास,मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा,तुलसीदास जी एवं अटल जी हैं। आपकी विशेषज्ञता-मुक्त भाव से लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हमें बहुत अभिमान है। हिंदी हमारी जान है। हमारे राष्ट्र को अखंडता में रखना अति आवश्यक है। हिंदी भाषा ही सभी प्रांतों को जोड़ सकती है,क्योंकि यह एकदम सरल भाषा है।

Leave a Reply