दर्द पर दर्द

विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)********************************************************* जिंदगी रोप दी मैंने घने अभावों में,दर्द पर दर्द की मरहम लगाई घावों में। राह कोमल दिखी मुझको तमाम मंजिल तक,चल पड़ी तब लगा शीशे चुभे हैं पावों में। कुछ सवालों के हल निकले तो जिंदगी सँवरी,कुछ सवालात ही उठते रहे जवाबों में। तेरे ही हुक्म से होते हैं रात-दिन मेरे,मेरी हर साँस … Read more

प्यार का दीप इक जलाना है

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* जिन्दगी तू वो आशियाना है, जिसमें ख़्वाबों का इक खजाना है। अपने चारों तरफ अंधेरा है, प्यार का दीप इक जलाना है। इस नये दौर का विरानापन, फिर नयी आस से बसाना है। देवकी फिर कन्हाई को जन्मो, कलयुगी कंस को मिटाना है। ऐ ‘विभा’ छोड़ के न जा इसको, लुट … Read more

बात करना ठीक है क्या

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* सुब्ह के निकले हुये हो,रात करना ठीक है क्या, हर घड़ी इक ख्वाब की ही बात करना ठीक है क्या। मत बढ़ो आगे,जरा ठहरो,वहां पर आसमा है, लांघ कर सीमा किसी पर घात करना ठीक है क्या। हो बड़े तैराक लहरों की कलाएं जानते हो, पर समन्दर में बला उत्पात करना … Read more

मौसमी उरतिया

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* सपनों से आज हुईं मनचाही बतिया, पता नहीं कौन पल बीत गयी रतिया। बरसाती मौसम की रिमझिम फुहारों से, खिड़की की जाली से छनती बौछारों से। तन-मन पर चुभती-सी रसभीनी सुइयां, जियरा को गुदगुदाय सतरंगी रुइया। न जाने ऐसे में उलझ गई मनुआ से, किसकी अनबूझी अनचीन्ही सुरतिया॥ रेशम के सपनों … Read more

हो गया सूना जहां…

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* पुत्र अमरेश के स्वर्गवास पर रचित……….. हाय अब मैं क्या करूँ, अब क्या रखा जग में यहाँ…। भीड़ में भी एक पल में, हो गया सूना जहां॥ तू विलग हो गया तन से, आत्मा मौजूद है। मैं विलग हूँ आत्मा से, तन यहां महफूज है। यह विषमता चीरती दिल, तू मिलेगा … Read more

रखो साहस उद्दाम

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* ‘कोरोना’ वायरस ने कर दी चढ़ाई, चलो लड़ने को भाई। ये है कीड़ा विकराल, चाइना की कुचाल बना मानव का काल, कैसा फैलाया जाल… सुबह होते तक करना है इसकी सफाई। करो दरवाजे बंद, रहो घर में स्वच्छंद पाये लहू की न गंध, यही इससे है द्वंद्व, रहे भूखा दरवाजों पे … Read more

मेरे-सा संसार नहीं

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष…….. प्रकृति परी तू रच सकती है,मेरे-सा संसार नहीं, मिले तुझे हैं विधि से अनुपम,मेरे से उपहार नहीं। मेरी आँखों के बादल जब,बूंद-बूंद बरसाते हैं, तब तेरे मानस पर खारे,सप्त सिंधु भर जाते हैं… लेकिन आ सकते हैं उनमें,इन आँखों से ज्वार नहीं। मेरे उर से निकल-निकल … Read more

जीवन का संग्राम बहुत है

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* द्वंद्व करूँ क्या अधम मृत्यु से, जीवन का संग्राम बहुत है। क्षण-क्षण आते आँधी-पानी, पल-पल उठते यहाँ बवंडर चाहें कि उपजाऊ बगिया, बनती रेगिस्तानी बंजर। कितने सपने आतप देंगे, एक सूर्य का घाम बहुत है। लड़ते-लड़ते चली यहाँ तक, लड़ते-लड़ते आगे जाना समझ लिया मैंने है जीवन, संघर्षों का ताना-बाना। तानों-बानों … Read more

छब्बीस जनवरी बोली…

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* गणतंत्र दिवस स्पर्धा विशेष……… छब्बीस जनवरी बोली-बाकी है अभी लड़ाई, फैला जो कचरा उसकी,करना है हमें सफाई। ज्यों भागे कभी फिरंगी, हर दुश्मन डर कर भागे। रह जाए न कोई छिप कर, भारत का जन -जन जागे। ये सर पर चढ़ बैठेंगे,गर हमने दया दिखाई, हम कर न सकेंगे अपने नुकसानों … Read more

आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* ‘आत्मजा’ खंडकाव्य अध्याय-२०……. कैसे कह दूँ आगन्तुक से, मुझे नहीं यह रिश्ता भाया मैं न अभी हो सका आधुनिक, वही करूँ जो चलता आया। आइएएस हों बेटा-बेटी, तो दायित्व और बढ़ जाते क्या वे उनके लिये करेंगे, जो समाज से ही कट जाते। नहीं मानते परम्परा को, रीति-रिवाजों को ठुकराते निहित … Read more