बेनाम इशारों पर आजादी

रणदीप याज्ञिक ‘रण’  उरई(उत्तरप्रदेश) ******************************************************************** अब आराम कहाँ, दिमाग जो खुद व्यस्त चौराहा हो चला तभी तो अब शान्त गली भी मन को रिझाती है…l अच्छा लगता है अब, कभी-कभी यूँ ही नीरस रहना क्योंकि सुना है रेगिस्तान की भी अपनी एक पहचान होती है…l कभी-कभी ठहर जाती है निगाहें, टक-टकी लगाये अपरिचित-सी दीवारों पर … Read more