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बेनाम इशारों पर आजादी

रणदीप याज्ञिक ‘रण’ 
उरई(उत्तरप्रदेश)
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अब आराम कहाँ,
दिमाग जो खुद व्यस्त चौराहा हो चला
तभी तो अब शान्त गली भी मन को रिझाती है…l

अच्छा लगता है अब,
कभी-कभी यूँ ही नीरस रहना
क्योंकि सुना है रेगिस्तान की भी
अपनी एक पहचान होती है…l

कभी-कभी ठहर जाती है निगाहें,
टक-टकी लगाये अपरिचित-सी दीवारों पर
जैसे कोई अनजान ओझल तस्वीर पुकारती हो…l

कान में कुछ फुसफुसाकर हवा की सरसराहट भी,
आँखों में नींद को रिझाती है
और झींगुर की झन्नाहट भी आँखों का वजन बढ़ाती है…l

पर कमबख़्त घड़ी की टक-टकी बेवजह ही,
वक्त के गुजरने का एहसास कराती है
तभी तेज हवा का झोंका खिड़कियों को जोर से खड़खड़ाता है…l

फिर नींद को ये बेवजह ही उकसा कर,
आँखों से ओझल कराती है
फिर समझ आती है बदन की टूटन,
बस अंगड़ाई ही एक चाबी है…l

अंगड़ाई लेकर जब झाँका उन खिड़कियों से,
टूट कर बिखरे पड़े थे कुछ पत्ते
सोचा ये तो अब सूख जाएंगे…l
खैर,क्या हुआ कम-से-कम उनको तो,
अब बेनाम इशारों पर उड़ने की आजादी हैll

परिचय–रणदीप कुमार याज्ञिक की जन्म तारीख १३ मई १९९५ है। साहित्यिक नाम `रण` से पहचाने जाने वाले श्री याज्ञिक वर्तमान में वाराणसी में हैं,जबकि स्थाई बसेरा उरई(जालौन)है। वर्तमान में एम.ए (द्वितीय वर्ष) के विद्यार्थी और कार्यक्षेत्र भी यही है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत अपने लेखन के माध्यम से विचारों का सम्प्रेषण करते हैं। इनकी लेखन विधा-गीत,कविता, कहानी और लेख है। प्रकाशन के तहत वर्तमान में कार्य(बुन्देखण्ड से संबंधित इतिहास पर)जारी हैl रण की लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त रूढ़ियों को तोड़ना,अंधविश्वास को दूर करना, नागरिक बोध की समझ विकसित कराने के साथ-साथ निष्पक्ष सोच की मानसिकता को पैदा कराने का प्रयास है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-माता-पिता,शिक्षकगण तथा मित्रगण हैं।भाषा ज्ञान-हिन्दी,बुन्देलखण्डी एवं अंग्रेजी का रखते हैं। रुचि-लेखन,खेल और पुस्तकें पढ़ने में है।

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