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श्रम का मूल्य समझने का दिन

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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विश्व श्रमिक दिवस विशेष……

‘श्रमसीकर नित पूज्य हों,पायें नित सम्मान।
श्रम से ही धनधान्य है,श्रम से ही उत्थान॥’

श्रमिकों द्वारा की गई कड़ी मेहनत का सम्मान करने के साथ-साथ श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ने वालों को सम्मान देने के लिए श्रम दिवस को मनाया जाता है। इस दिन को भारत सहित विश्व के कई देशों में हर साल १ मई के दिन मनाया जाता है।
बहुत संघर्ष के बाद श्रमिकों को उनके अधिकार दिए गए थे। जिन्होंने इस दिवस के लिए कड़ी मेहनत की,उन्होंने इसके महत्व को और अधिक बढ़ा दिया। अधिकांश देशों में श्रम दिवस समारोह ने शुरू में अपने संघ के उन नेताओं को सम्मान देने का काम किया जिन्होंने इस विशेष दिन का दर्जा हासिल किया और दूसरों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। प्रमुख नेताओं और श्रमिकों द्वारा एक साथ प्रसन्नता के साथ समय बिताने पर भाषण दिए जाते हैं।
ट्रेड यूनियन मजदूरों की टीम के लिए विशेष भोजन और रात्रिभोज या संगठित पिकनिक आयोजित करते हैं। कार्यकर्ताओं के अधिकारों का जश्न मनाने के लिए अभियान और परेड आयोजित की जाती हैं। पटाखे भी जलाए जाते हैं। जहाँ कई संगठन और समूहों द्वारा इस दिन पर पिकनिक, अभियान तथा परेड आयोजित किए जाते हैं,वहीं कई लोग इस दिन को बस आराम करने और फिर से जीवंत करने के अवसर के रूप में देखते हैं। वे अपने लंबित घरेलू कार्यों को पूरा करने में समय व्यतीत करते हैं या अपने दोस्तों और परिवार के साथ बाहर जाते हैं।
कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में श्रम दिवस को सितंबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है। वहां लोग लंबे सप्ताहांत का आनंद लेते हैं। यह उन्हें थकाने वाले दैनिक जीवन से बहुत आवश्यक राहत प्रदान करता है। श्रमिकों के बीच एकता को बढ़ावा देने के लिए भी भाषण दिए जाते हैं।
दुनियाभर के कई देश श्रम दिवस का जश्न मनाते हैं। इनमें से कुछ में ऑस्ट्रेलिया,बांग्लादेश,बहामास, कनाडा,नाइजीरिया,युगांडा और मोरक्को आदि शामिल हैं। इन देशों में उत्सव की तारीख भिन्न-भिन्न होती है। बांग्लादेश अप्रैल में इस दिन को मनाता है जबकि बहामास इसे जून में मनाता है। हालांकि अधिकांश देश श्रम दिवस १ मई को मनाते हैं।
श्रम दिवस का इतिहास और उत्पत्ति हर देश के हिसाब से भिन्न-भिन्न है। विभिन्न देशों में मजदूर और ट्रेड यूनियन बहुत संघर्ष करते हैं। विरोध प्रदर्शन किए जाते हैं और रैलियों को आयोजित किया जाता है। उद्योगपतियों द्वारा श्रम वर्ग पर किए गए अन्यायपूर्ण व्यवहार के खिलाफ कानून बनाने के लिए सरकार को लंबा समय लगा। मजदूरों द्वारा किए गए प्रयासों को मनाने के लिए एक विशेष दिन को बाद में मान्यता प्राप्त हुई थी।
कनाडा में औद्योगिकीकरण की वृद्धि के साथ श्रम वर्ग पर काम का बोझ ज्यादा हो गया। मज़दूर वर्ग को बहुत अधिक शोषित किया गया था। इस अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज उठाने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से मजदूरों ने हाथ मिलाया। उन्होंने पूंजीवादी वर्ग के अत्याचार के खिलाफ विभिन्न आंदोलन किए। बहुत संघर्ष के बाद देश में श्रमिक वर्ग को उसके अधिकार मिले थे। श्रम संघों द्वारा इस दिशा में कई आंदोलन किए गए थे। हड़ताल पर जाना उस समय का अपराध था। हालांकि,विरोध जारी रहे और कुछ महीने बाद ओटावा में इसी तरह की परेड का आयोजन किया गया। इसने सरकार को ट्रेड यूनियनों के खिलाफ कानून को संशोधित करने के लिए मजबूर किया। अंततः कनाडा के श्रम कांग्रेस का गठन हुआ।
उन्नीसवीं सदी के अंत के दौरान ही संयुक्त राज्य में श्रम वर्ग पर बढ़ते शोषण ने केन्द्रीय श्रम संघ और नाइट्स ऑफ लेबरर्स के हाथों में शामिल होने के लिए नेतृत्व किया। साथ में उन्होंने पहली परेड का नेतृत्व किया,जिसमें उद्योगपतियों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण आंदोलन को चिह्नित किया गया,जो श्रमिकों को कम मजदूरी देकर और उन्हें लंबे समय तक काम करने के लिए मजबूर करके उनका शोषण कर रहे थे।ल विभिन्न संगठनों के श्रमिकों ने इस कारण में शामिल होने के लिए भाग लिया। उनकी मांगों की अंततः सुनवाई की गई।
यह समय श्रम के महत्व को फिर से जीवंत करने का है। यह वक़्त मजदूरों के अधिकारों के लिए लड़ने और सुधार लाने वाले लोगों का सम्मान करने का भी है। यह केवल कुछ लोगों की वजह से है जो आगे आए और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया जिससे श्रमिकों को उनके वैध अधिकार दिए जा सके।
“श्रमिक दिवस इक पर्व है,श्रम का मंगलगान।
श्रम का पूरा मान हो,हो जग का कल्यान॥

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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