मंजू भारद्वाज
हैदराबाद(तेलंगाना)
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रात के ३ बज रहे थे,पर नींद आँखों से कोसों दूर थी। सारी रात बिस्तर पर करवटें बदलता रहा। दस सालों से मैं वकालत के पेशे में हूँ,हर तरह के लोगों के बीच मेरा उठना-बैठना है। बहुत मामले (केस) सुलझाए थे मैंने। वकालत के गलियारे का शहंशाह माना जाता हूँ,लोग मुझे चेतक कहते हैं क्योकि आज तक कोई प्रकरण नहीं हारा था,पर आज मिसेज मल्होत्रा के मामले ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया था। बहुत बेचैनी महसूस हो रही थी,मैं उठकर बाहर बालकनी में आ गया। रात के गहन सन्नाटे में मेरे अंदर का शोर बहुत बढ़ गया था। मैं बैठ नहीं पा रहा था,उठकर अपने चैम्बर की तरफ चल पड़ा।
प्यार,ममता,त्याग,समर्पण की मूरत मानी जाने वाली औरत का जो रूप आज मैंने देखा,उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था। औरत के इस रूप को मैंने अपने जीवन काल के दरमियान पहली बार देखा था।
आज सुबह जब मिसेज मल्होत्रा चैम्बर में आई,तो उनका बदरंग चेहरा,वीरान आँखें,उलझी लटें,होंठों की दहलीज पार करती बेतबरी से लगी लिपस्टिक,आँखों में फैला काजल,मुड़े हुए कपड़े। पहली नजर में उन्हें देखते ही किसी पागल औरत की तस्वीर उभर आई थी,पर उनकी आवाज की शालीनता और ठहराव ने मुझे बांध लिया था। बातों ही बातों के दौरान उन्होंने बताया कि वह अपने पति से तलाक लेना चाहती हैं।
“वह तो मिल जाएगा पर हमारी हमेशा पहले यह कोशिश रहती है कि हम घर टूटने ना दें। इसलिए आप कुछ समय लीजिए और सामंजस्य बैठाने की कोशिश कीजिए और यदि ऐसा ना हो पाया तो हम आपको तलाक दिलवा देंगे।” मैंने उन्हें समझाते हुए कहा।
“नहीं और समय मैं नहीं ले सकती।” ठोस शब्दों में उसने कहा।
“क्यों…?”
“मैं तलाक लेना चाहती हूँ। सामंजस्य जैसे की बात तो हो ही नहीं सकती क्योंकि उनका स्वर्गवास हो गया है।”
“क्या…?! कहते हुए मैं कुर्सी से उछल पड़ा था।
“जी हाँ…।”
“फिर आप तलाक किससे लेना चाहती हैं ?” मैंने हैरानी से पूछा।
“अपने पति के नाम…जो मेरे नाम के साथ जुड़ा है रीना मल्होत्रा। मैं मल्होत्रा नाम से अलग होना चाहती हूँ।” चीखते हुए टेबल पर हाथ मारते हुए रीना ने कहा।
“मैं समझ नहीं पा रहा हूँ,एक मरे हुए आदमी से तलाक लेने का क्या औचित्य है। वह भी यूँ ही आपसे दूर है।” मैंने उसे समझाते हुए कहा।
“बहुत बड़ा औचित्य है वकील साहब। मैं अपना नाम उसके नाम से अलग करना चाहती हूँ।” गुस्से में उसने कहा।
“रीना जी,वकील और डॉक्टर से खुलकर बात की जाती है ताकि इलाज सही तौर पर किया जा सके। जब तक आप इस तलाक की वजह नहीं बताएंगी, मैं आपका केस कैसे लड़ूंगा,पर प्लीज पहले आप बाथरूम जाकर अपना मुँह धो लीजिए। आपका चेहरा आपकी वीभत्स मानसिकता का परिचय दे रहा है।”
“जी नहीं…वकील साहब वीभत्स मानसिकता नहीं है। एक विधवा को सधवा बनाने की यह कोशिश है मेरी। यह अलग बात है कि आज हाथ मेरा साथ नहीं दे रहा था। इसीलिए मेक-अप ठीक से नहीं कर पाई।” उसने रुमाल लेकर अपना मुँह पोंछते हुए कहा। मैं हैरान था उसकी बातों पर। ये शब्दों का जाल था,या जीवन का जंजाल ये तो वही बता सकती है,पर अब वह बेहतर लग रही थी।
“हाँ रीना जी,बताइए ऐसी क्या बात है जो आप अपने पति की यादों से-उसके नाम से भी दूर जाना चाहती हैं।” मैंने खुद की भावनाओं पर काबू रखते हुए पूछा। वह फफक-फफक कर रो पड़ी। काफी देर रोने के बाद वह कुछ संयत होकर पास रखे पानी के ग्लास उठा पानी पीने लगी।
“यह केस कैसे फाइल होगा ? बहुत मुश्किल है इसे फाइल करना..ऐसा केस आज तक फ़ाइल नहीं हुआ था।” मन ही मन बड़बड़ाते हुए मैंने वकालत की किताब के पन्नों को पलटना शुरू किया। कहीं कुछ सुराग मिल जाए,ताकि यह केस फाइल कर सकूं। कुछ देर की चुप्पी के बाद मैंने रीना जी से पूछा-
“हाँ तो रीना जी बताइए…आप क्यों तलाक लेना चाहती हैं ?”
“राजीव ने मुझे धोखा दिया है,उसने मुझे बहुत… बहुत…धोखा दिया है। मैं उसके जीते-जी यह जान नहीं पाई थी कि पिछले १० सालों से झूठ की जिंदगी जी रही हूँ,उसका हर प्यार एक झूठा दिखावा था।उसकी मुस्कान झूठी थी। वह सर से पांव तक झूठ ही झूठ था। मैं अंधी यह भी देख नहीं पाई कि उसके अंदर का सच क्या है। मैंने उसे टूट कर चाहा था। उसने भी मुझे यही जताया कि वह भी मुझसे बहुत प्यार करता है। मैंने अपना घर-बार, कैरियर सब इसके लिए छोड़ दिया। सबके मना करने पर भी उससे शादी की और शादी ही नहीं,उसे एक सफल इंसान भी बनाया। ना जाने कैसा खुमार छाया था मुझ पर,जिधर से गुजरो बस वही-वही नजर आता था। उसके बिना कोई चेहरा मुझे भाता ही नहीं था। मैंने उसे देवता बना दिया था। वह शायद इसे मेरी कमजोरी समझने लगा था। वह मुझे जब भी फोन करता,प्यार का इजहार करता। शादी के २० साल बाद भी वह ऐसा ही था,पर अब लग रहा है कि यह सब उसकी साजिश थी मुझे गुमराह करने की।”
“आप ऐसा कैसे कह सकती हैं ? वह सच भी तो हो सकता है कि वह सच में आपसे प्यार करता होगा।” मैंने उन्हें समझाते हुए कहा।
“हा…हा…हा…हा…हा…वकील साहब कोरी बातों में ना आइए,मैं पागल नहीं हूँ,जिसे देवता की तरह पूजा,उसकी मूर्ति चौराहे पर पटक कर चूर-चूर कर दूँ। औरत जब प्यार करती है,तो वह प्यार नहीं पूजा करती है। वह उसे अपने जीवन का आराध्य बना लेती है। उसके साथ वह हर दु:ख,हर आंधी,हर तूफान को सहती है,पर अपने पति पर आंच नहीं आने देती है,पर जब वह टूटती है तो उसका वेग ब्रह्मा भी नहीं संभाल सकते हैं। उसकी प्रचंड धारा में सब-कुछ बह जाता है।” कहते हुए उसकी बड़ी-बड़ी आँखों से दो बूंद आंसू टपक कर उसके गालों पर गिर पड़े।
“रीना जी,अब वह नहीं है और आप पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। छोड़िए उसे,आगे बढ़िए।”
“अरे नहीं…लड़ाई यही तो है। उसका विश्वासघात मुझे जीने नहीं दे रहा है। आगे बढ़ने नहीं दे रहा है। जब भी घर के दरवाजे पर देखती हूँ,रीना मल्होत्रा की नेम प्लेट में ये मल्होत्रा शब्द मेरा मजाक उड़ाता हुआ प्रतीत होता है। जब भी उसकी तस्वीर देखती हूँ,तो लगता है वह मेरी खिल्ली उड़ा रहा है। मानो कह रहा है…कैसा बुद्धू बनाया तुम्हें…। मेरे घर में, मेरी तस्वीर में,मेरी यादों में वह मुझे जीने नहीं दे रहा है। यदि वह जीवित होता तो शायद मैं आगे बढ़ चुकी होती पर आज वह है और यह बंधन मुझे तोड़ना है।” भरी आँखों से उसने कहा।
“आपकी शादी के २० साल हो गए,कभी तो आपने उसे प्यार किया होगा।”
“कभी-…? कभी से क्या मतलब है आपका…? मैंने हर पल,हर क्षण,उससे ही प्यार किया था,मेरी मुस्कुराहट उससे थी। मेरा श्रृंगार उससे था। मैं घर उसके लिए सजाया करती थी। मैं हर जगह उसके साथ जाया करती थी। मेरा तो जीवन ही उससे था।”
“रीना जी,जब इतना प्यार करती थी आप उसे तो अब क्षमा कर दीजिए। अब तो वह इस दुनिया में नहीं है।” मैंने फिर से समझाने का प्रयास किया।
“नहीं…कभी नहीं अब तो सोते जागते यही लगता है कि उसको बरसों का प्यार दिखावा था। उसकी हर बात में झूठ का एहसास होता है। उसके हर उपहार में चापलूसी की गंध आती है। उसके हर फोन कॉल पर सीआईडी गिरी का आभास होता है। पलभर में उसने मेरे पिछले २० साल को शक के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है। अब जब भी उसकी याद आती है,उसके साथ उसकी बेवफाई भी चली आती है। कैसे भूलूं उसे…मैं उसकी बेवफाई को कभी नहीं भूल सकती।मुझे उससे ही नहीं,उसकी यादों से भी नफरत हो गई है। मुझे इन सबसे आजादी चाहिए।”
इतनी नफरत,इतना गुस्सा देखकर पलभर के लिए मैं सब-कुछ भूल गया था। माहौल गमगीन हो चला था। मैंने कुछ ठहर कर उनसे पूछा-
“रीना जी,आप उनसे इतनी नफरत क्यों करती हो ? जहां तक मुझे याद आ रहा है मैंने ही ये केस हैंडल किया था। जब राजीव की बॉडी लेकर पुलिस आपके घर आई थी तो आपने पुलिस पर पत्थर बरसाए थे और पागलों की तरह चीख रही थी,नहीं मेरा राजीव नहीं मर सकता…नहीं मर सकता… तुम लोग झूठे हो,गद्दार हो और आज आप उस मरे हुए को ही मारने पर उतारू हैं,क्यों, आखिर ऐसा क्यों… ?”
“वकील साहब आपकी शादी हुई है।” रीना ने उल्टा प्रश्न दागते हुए कहा ।
“जी हाँ।”
“कभी आप अपनी पत्नी को धोखा मत देना। औरत सब कुछ सह सकती है,पर धोखा बर्दाश्त नहीं कर सकती है।”
मेरी भी आँखें नम हो गई थी। क्या होता है औरत का दिल और क्या होता है औरत का इंतकाम ? यह मैं आज प्रत्यक्ष देख रहा था।
“प्लीज रीना जी,आप कैसे कह सकती हैं कि उसने आपको धोखा दिया है।”
रीना ने बताना शुरू किया,”मैं औऱ राजीव एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। हमारे प्यार के किस्से सबकी जुबान पर थे। राजीव के गुजरने के बाद मैं पागल हो गई थी। ऐसा लगा मेरे सर पर आसमान फट पड़ा हो। चार दिन तक मैं भूखी-प्यासी कमरे में पड़ी रही, सबने बहुत कोशिश की मुझे संभालने की,पर मेरी जिद के सामने सब हार गए। क्यों किया भगवान ने मेरे साथ ऐसा…आखिर क्यों…क्यों…? बार-बार यही प्रश्न पूछती रही। किसी के पास मेरे प्रश्न का जबाब नहीं था। मैं भी मर जाना चाहती थी, मैं उसके बिना नहीं जी सकती थी। मैं चुपचाप अपने मंदिर के सामने बैठी रही औऱ सूनी आँखों से भगवान को निहारती रही,जो आज मुझे कितना लाचार और बेबस लग रहा था। मैं उदास थी,गुस्से में थी,नाराज थी पर सामने कृष्ण की प्रतिमा मुस्कुरा रही थी। मैंने गुस्से में मंदिर का पट जोर से बंद कर दिया और चीख कर बोली “मेरे दु:ख पर तुम हँस रहे हो,तुम देवता हो या दलाल। मैं कभी नहीं करूंगी तुम्हारी पूजा। बचपन से तुम्हें पूजती आई हूँ,उसका यह सिला दिया है कि मुझसे मेरा प्यार छीन लिया तुमने।” रोते-रोते पता नहीं कब मेरी आँख लग गई। सुबह उठी तो दरवाजे पर घंटी बज रही थी। दरवाजा खोला तो सामने एक महिला खड़ी थी
“जी मैं शर्मीला हूँ।”
“जी कहिए।”
“मुझे आपसे बात करनी है प्लीज। मैं अंदर आना चाहती हूँ।” एक अनजान महिला को…पहले तो मैंने कुछ सोचा,फिर अंदर आने के लिए कहा, “आइए।”
“मेरा नाम शर्मिला है। मैंने राजीव के लिए सुना तो मुझे बहुत दु:ख हुआ।” कहते हुए उसकी आँखें भर आई। उसके मुँह से राजीव का नाम इस तरह सुनना कुछ अजीब-सा लगा।
“आप उन्हें कैसे जानती हैं ?” मैंने सरलता से पूछा।
“जी हम दस सालों से साथ थे।”
“क्या मतलब…?”
“हम रिलेशनशिप में थे पिछले दस सालों से।”
“क्या…? क्या बकती हो…! दिमाग ठीक है तुम्हारा ।” चीखते हुए मैंने कहा। ऐसा लगा,हजारों बिच्छू ने एकसाथ डंक मार दिया हो।
” जी मैं…मैं…बिल्कुल सही कह रही हूँ। मैं जानती हूँ,आपको पता नहीं है। मैं चाहती तो आपको नहीं बताती,पर पता नहीं क्या हुआ। मैं कल रात मैं वृंदावन में थी। मैं रातभर सो नहीं पाई। मुझे ऐसा लग रहा था कि बार-बार बांके बिहारी मुझे लात की ठोकर से उठा रहे हैं और कह रहे हैं…जाओ,जाओ …अभी जाओ रागिनी के पास। उसे सब बताओ।” कहते हुए वह फफक-फफक कर रोने लगी।
उसकी बात सुनकर मैं अवाक थी। यदि कोई और होता तो उसकी बात पर विश्वास नहीं करती। इसे काल्पनिक कहती,पर मैं बरसों से कृष्ण के चरणों में समर्पित हूँ। मुझे कृष्ण की अनगिनत लीलाओं का आभास होता रहा है। मैं सामने की दीवार पर टंगी कृष्ण की बड़ी-सी तस्वीर को देखती रही।
“प्रभु यह क्या है…यह कौन-सी लीला है तेरी…आज पति के साथ साथ उसके यादों को भी जख्मी कर रहे हो। कितने निष्ठुर हो तुम।” मैंने भरी आँखों से उसे निहारते हुए मन ही मन कहा।
छाती में दर्द-सा महसूस होने लगा था। खुद को संभालते हुए मैंने उससे कहा-“आपके पास क्या सबूत है कि आप सच बोल रही हो ? कैसे मान लूं आप दोनों के बीच कुछ था।”
उसने अपना पर्स खोला और उसमें से अपना बैंक का डिटेल स्टेटमेंट निकाला,जिसमें कई जगह पर राजीव के बैंक से उसके खाते में पैसे ट्रांसफर हुए थे। फिर उसने कई बिल मेरे सामने रख दिए,जो राजीव के खाते से दिए गए थे। कुछ तस्वीरें निकाली और टेबल पर बिखेर दी। ओह…मेरा दिल कई टुकड़ों में चटक गया था। राजीव और उसकी तस्वीर देखकर मेरे हाथ-पांव-दिमाग सब सुन्न हो गए। उसने बताया,दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। अक्सर दोनों घूमने जाया करते थे। शॉपिंग जाते। एक बार तो वह मेरे घर भी आई थी, जब मैं घर पर नहीं थी। उसकी बातें सुन मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। ऐसा लगा कोई मुझे लातों-घूंसों से पटक-पटक कर मार रहा हो। मैं असहनीय पीड़ा से तड़प उठी,पर शर्मिला लगातार बोलती जा रही थी।
“उसने आपको बहुत धोखा दिया है। उसका मरना ही उचित था।” मैंने एक थप्पड़ उसके गाल पर रसीद किया…
“तुम तो राजीव से इतना प्यार करती थी तो फिर ऐसा कैसे कह सकती हो। अरे तुम क्या जानो प्यार होता क्या है।” मैंने चीखते हुए कहा।
उसने गाल सहलाते हुए कहा-“मैंने बहुत बार उससे कहा कि,चलो शादी कर लेते हैं पर वह नहीं माना। वह दोनों हाथों में लड्डू लेकर जीना चाहता था। वह अक्सर कहता रागिनी बुद्धू लड़की है,और मेरे प्यार में पागल है उसे मेरे बिना कुछ दिखता ही नहीं है। उसे मैं मैनेज कर लूंगा,तुम टेंशन मत लेना।”
“मैनेज…कर लूंगा…क्या राजीव मुझे मैनेज…कर रहा था। नहीं…जोर से चीखते हुए मैंने टेबल पर जोर से हाथ दे मारा। इस मैनेज शब्द ने तो मेरा फ्यूज ही उड़ा दिया था। वह भी घबरा गई थी, “मैम आप शांत हो जाइए,प्लीज शांत हो जाइए।” शर्मिला मुझे शांत कराने लगी ।
“मेरी तपस्या,मेरा समर्पण,मेरे प्यार को वह मैनेज… कर रहा था।” राजीव…चीख पड़ी थी मैं। ओह…मन तड़प उठा।
जिन पलों की यादें मुझे कल सोने नहीं दे रही थी, वह आज भी मुझे सोने नहीं दे रही है। बस फर्क यह है कि कल उसकी याद में प्यार था,जो मुझे कमजोर कर रही थी और आज की याद में नफरत है,जिसने मेरे कदमों में इतनी ताकत भर दी है ताकि मैं उसकी यादों को जोरदार किक मार कर अपने जीवन की बाउंड्री से बाहर फेंक सकूं। अब मैं उसका सरनेम अपने नाम से हटाना चाहती हूँ,ताकि मेरा घर सिर्फ मेरा हो,किसी और की यादों की इसमें कोई जगह नहीं है। यही मेरा इंतकाम होगा।”
“पर क्या आप जानती हैं,ऐसा करने से आपको उसका इंश्योरेंस का पैसा भी नहीं मिलेगा ? मैंने अपना आखरी दाँव फेंका।
“हा…हा…हा…हा…हा… हाहा…हा” ठहाका लगाते हुए वह बोली-“जीते जी राजीव ने सब मैनेज किया था,उसके मरने के बाद आप मैनेज कर दीजिए। वकील हैं सारे हथकंडे तो आप जानते ही होंगे।” कहते हुए वह उठी और कमरे से बाहर निकल गई। मैं अवाक उसे देखता ही रह गया ।
राजीव के प्यार के सहारे वो शायद जी नहीं पाती,पर नफरत के सहारे वो जी लेगी और भी मजबूती से जिएगी। वाह रे विधाता तेरे खेल ही निराले हैं।
परिचय-मंजू भारद्वाज की जन्म तारीख १७ दिसम्बर १९६५ व स्थान बिहार है। वर्तमान में आपका बसेरा जिला हैदराबाद(तेलंगाना)में है। हिंदी सहित बंगला,इंग्लिश व भोजपुरी भाषा जानने वाली मंजू भारद्वाज ने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। कार्यक्षेत्र में आप नृत्य कला केन्द्र की संस्थापक हैं,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत कल्याण आश्रम में सेवा देने सहित गरीब बच्चों को शिक्षित करने,सामाजिक कुरीतियों को नृत्य नाटिका के माध्यम से पेश कर जागृति फैलाई है। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,ग़ज़ल,नाटक एवं कहानियां है। प्रकाशन के क्रम में ‘चक्रव्यूह रिश्तों का'(उपन्यास), अनन्या,भारत भूमि(काव्य संग्रह)व ‘जिंदगी से एक मुलाकात'(कहानी संग्रह) आपके खाते में दर्ज है। कुछ पुस्तक प्रकाशन प्रक्रिया में है। कई लेख-कविताएं बहुत से समाचार पत्र-पत्रिका में प्रकाशित होते रहे हैं। विभिन्न मंचों एवं साहित्यक समूहों से जुड़ी श्रीमती भारद्वाज की रचनाएँ ऑनलाइन भी प्रकाशित होती रहती हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो आपको श्रेष्ठ वक्ता(जमशेदपुर) शील्ड, तुलसीदास जयंती भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान,श्रेष्ठ अभिनेत्री,श्रेष्ठ लेखक,कविता स्पर्धा में तीसरा स्थान,नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम,जमशेदपुर कहानी प्रतियोगिता में प्रथम सहित विविध विषयों पर भाषण प्रतियोगिता में २० बार प्रथम पुरस्कार का सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-देश-समाज में फैली कुरीतियों को लेखनी के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत करके दूर करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-दुष्यंत,महादेवी वर्मा, लक्ष्मीनिधि,प्रेमचंद हैं,तो प्रेरणापुंज-पापा लक्ष्मी निधि हैं। आपकी विशेषज्ञता-कला के क्षेत्र में महारत एवं प्रेरणादायक वक्ता होना है। इनके अनुसार जीवन लक्ष्य-साहित्यिक जगत में अपनी पहचान बनाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा साँसों की तरह हममें समाई है। उसके बिना हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है। हमारी आन बान शान हिंदी है।’