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थू है..

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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मसला यह नहीं है कि,चीन के हथियार ‘कोरोना’ ने बाकी देशों का कितना नुकसान किया,मुद्दा यह है कि देश बड़ा होता है या धर्म बनाम जिद ?
इसे सभी का पुण्य कहिए कि अभी भारत में कोरोना विषाणु अपने वीभत्स रुप में नहीं आया है,क्योंकि सभी राज्य सरकारें केन्द्र के सहयोग से ‘तालाबंदी’ ही नहीं,स्वास्थ्य और बचाव नियमों का भी बेहतर पालन करा रही है। चीन,इटली,स्पेन और महाबली अमेरिका जैसे देशों में कोरोना के सुनामी जैसे आतंक के बाद भी भारत बेहतर स्थिति में है,क्योंकि यहाँ चिकित्सक,अधिकारी और पुलिस ने ईश्वर का रुप धारण कर लिया है,पर अगर कोई जान बचाने वाले को मारे-पीटे और उस पर थूके तो क्या कहिएगा…?
ऐसा व्यक्ति किसी भी धर्म का अनुयायी तो नहीं हो सकता,और समझदार भी नहीं, क्योंकि निजामुद्दीन के मरकजे़-तब्लीग द्वारा भारत में कोरोना खतरे की बड़ी दस्तक देने के बाद भी जाँच-इलाज कराने जाना तो दूर, करने वालों पर अस्पताल में थूकना,विवाद, अश्लीलता-अभद्रता करना किस नजरिए से जायज है ?
१३ मार्च से चल रहे इस तब्लीगी मरकज बनाम इस्लामी अधिवेशन में देश के कोने-कोने से और १६ बाहरी देशों से लोग आए, वह भी तब एकत्रित हो गए जब देशभर में
कोरोना को लेकर सतर्कता जारी है। अब जब भारत में भी इस विषाणु का प्रकोप बढ़ रहा है तो मरकज में शामिल हुए लोगों की तलाश जोर-शोर से हो रही है।
मुद्दा यह है कि पहले तो इस विपरीत स्थिति के दौरान अधिवेशन ही गलत किया गया, क्योंकि देशभर में ‘सामाजिक-शारीरिक दूरी’ का अमल हो रहा था। जब सरकारी और निजी स्तर पर सारे ही अधिवेशन,कार्यशाला एवं परीक्षाएं तक स्थगित की गई तो आखिर धर्म के नाम पर यह जमावड़ा क्यों किया गया ? क्या देश की प्रतिष्ठा,कानून और लाखों जानों को नजरंदाज करते हुए किसी भी धर्म का ऐसे सार्वजनिक प्रचार करना वाकई आमजन की भलाई है,और ऐसे जानलेवा कारनामे से ईश्वर खुश होंगे!
इसमें पाकिस्तानी हाथ है या नहीं,यह तो भविष्य में सामने आएगा,पर अधिवेशन में शामिल होने वालों ने सबकी जान सांसत में डाल दी है। ऊपर से अब इस बीमारी की जांच और इलाज में असहयोग करना सीधे देशद्रोह ही है,क्योंकि उक्त रोग संक्रामक है।
सरकार ने अधिवेशन में शामिल ९ हजार लोगों को संगरोध(क्वारेंटाइन) तो कर दिया है,पर इनमें से सैकड़ों लोग कोरोना से पीड़ित हैं। लगभग दर्जनभर लोगों की जान जा चुकी है,फिर भी यह लोग धर्म की आड़ में दिल्ली और केन्द्र सरकार के सारे प्रतिबंधों की अवहेलना करने पर उतारू हैं। मरकजे-तबलीग ने ऐसा करके सिर्फ कानून का उल्लंघन ही नहीं किया,वरन जानलेवा रोग कोरोना की लाखों लोगों को तक पहुंच भी आसान कर दी। ईश्वर ना ही करे,पर इससे मौत का आँकड़ा और बढ़ने की प्रबलता से मना नहीं किया जा सकता है।
कहना गलत नहीं होगा कि,मरकज़ ने फिलहाल तो सबसे अधिक दुश्मनी ख़ुद की जमात से ही निभाई है,क्योंकि बीमार या मारे गए ज्यादातर लोग उनके ही हैं। ऐसे में अस्पताल में ईश्वर रूपी चिकित्सकों को पूरा सहयोग करते हुए ईमान के साथ इलाज कराना चाहिए,धन्यवाद देना चाहिए,पर हो रहा उल्टा है।
इस स्थिति में ऐसे थूकने वाले लोगों पर सख्ती बहुत आवश्यक है,भले ही वो छोटे-बड़े नागरिक किसी भी जमात के हों। कोरोनो के खिलाफ जब सारा देश एकजुट है, अपने-अपने योगदान से लड़ रहा है,तब ऐसे कट्टर अंधे और सबकी जान के दुश्मन बने लोगों और उनके व्यवहार पर थू है…। इस बुरे समय में अगर जान बचाने के लिए कोरोना पीड़ित या सामान्य मरीज चिकित्सक के पैर पड़ कर गुहार लगाएं या उसकी ससम्मान पूजा करें तो भी गलत नहीं होगा,लेकिन कुछ लोगों को बात समझ में आती ही नहीं है,यह फिर साबित हुआ है।
आने वाले दिनों में कोरोना का क्या स्वरूप होगा,सबसे ज्यादा कहाँ फैलेगा ? कहना संभव नहीं है,किंतु इतना तय है कि इसे छिपाने वालों को यह दंड से बख्शेगा कतई नहीं..। या जिससे भी मिलेंगे,उसकी जान के लाले पड़ना ही है,जिसमें परिजन,रिश्तेदार, और नजदीकी दोस्त सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
खास बात यह भी कि,इस मामले में ऐसे धर्म के ठेकेदारों बनाम पदाधिकारियों को भी बख्शा नहीं जाना चाहिए। इस संगठन के मुखिया को सब पता था,पर उन्होंने अपनी तकरीरों में कहा कि-“मुसलमानों तुम मस्जिदों में जाना बंद मत करो। अगर वहां मर भी गए तो इससे उम्दा मौत तुम्हें कहां मिलेगी। यह कोरोना मुसलमानों को डराने और मस्जिदों को बंद करवाने के लिए ही फैलाया जा रहा है।” अब इनकी अक्ल पर पाकिस्तान की तरह ही पड़े पत्थर देखिए कि ,जब भारत के सारे मंदिरों,गुरुद्वारों,गिरजों और मस्जिदों पर लोगों ने ख़ुद ही तालाबंदी कर ली थी तो इसमें साजिश किधर से आ गई ? ऐसे मुखिया की इस हरकत और समय पर इसकी अनदेखी करनेवाली दिल्ली पुलिस को भी दंड दिया जाना जरुरी है। पुलिस ने इस अधिवेशन को लेकर नोटिस तो दिया,पर समय रहते ठोस कार्रवाई नहीं की। पुलिस यदि तब ही इस जमावड़े को बर्दाश्त नहीं करती तो शायद आज हालात ऐसे नहीं होते कि,अधिवेशन में शामिल ९ हजार लोगों को संगरोध करना पड़ता।
कुल मिलाकर बात यही है कि,धर्म के नाम पर ऐसी जाहिलियत से धर्म की बदनामी ही हुई है,और यह कारनामा अघोषित रुप से मानव,मानवता का नरसंहार है,जिसे सरकार, कानून,इंसान,कोई गुरू भले ही माफ कर दें, किंतु ईश्वर-प्रकृति से क्षमा नहीं मिलेगी। थू है ऐसी हरकतों पर…।