कुल पृष्ठ दर्शन : 252

जन-दर्द की थे आवाज़

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर (मध्यप्रदेश)
******************************************

मुंशी प्रेमचंद जयंती विशेष…

कलम के सिपाही, किया शब्दों से राज,
जन-जन के दर्द की जो थे आवाज़।

‘गोदान’ की पीड़ा, ‘गबन’ की टीस,
हर पंक्ति में बताई जीवन की रीत।

‘कफन’ में लिपटी समाज की सच्चाई,
‘नमक का दरोगा’ ने ईमानदारी जगाई।

‘ईदगाह’ के हामिद में साहस था गहरा,
लोहे के चिमटे से वो बन नायक उभरा।

‘ठाकुर का कुआँ’ हो या ‘पूस की रात’,
किसान की पीड़ा बाँटी सबके साथ।

‘प्रेमाश्रम’ से दी मानवता को पुकार,
हर जाति-धर्म से परे, सबको दिया प्यार।

न था मंच, न कैमरा, बस कागज़ और कलम,
उससे ही रच डाला युगों का धरम।

कहानियाँ नहीं, वो जीवन के चित्रकार थे,
नाम प्रेमचंद, पर विचारों के महा-फनकार थे।

उनका हर शब्द आज भी जीवंत है,
युग बदले, पर समस्याएं आज भी ज्वलंत है।

साहित्य का अर्थ ‘मानवता’ ही होना चाहिए,
संसार को आज फिर मुंशी प्रेमचंद चाहिए॥