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वैलेंटाइन-डे

डॉ. उषा किरण
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
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काव्य संग्रह हम और तुम से


नहीं,
आज तो नहीं है मेरा ‘वैलेंटाइन-डे’
लेकिन…
मेरे हाथों में मेंहदी लगी देख तुमने
समेट दिए थे चाय के कप जिस दिन,
बुखार से तपते माथे पर रखीं
ठंडी पट्टियाँ जब,
ठसका लगने पर पानी दे
पीठ सहलाई जब,
जानते हो मुझे मंडी जाना नहीं पसंद तो
फ्रिज में लाकर सहेज दिए
फल-सब्जियाँ जब,
ठंड से नीली पड़ी उंगलियों को
थाम कर गर्म हथेलियों में,
फूँकों से गर्मी दी जिस
या परेशान देख पिन लगा दिया पल्लू में जब,
बदल दिया बच्चों का गीला नैपकिन और,
बूँदें आती देख अलगनी से
उतार दिए कपड़े जब,
तेज नमक पर भी खा ली सब्जी या
पी ली फीकी चाय बिना शिकायत जब,
पेंटिंग बनाते देख बच्चों को चुपचाप
रेस्तराँ ले गए स्कूटर पर और,
मेरा भी करा लाए खाना पैक जब
व्याकुल हो करवाचौथ पर बार-बार,
आसमाँ में ढूँढ रहे थे चाँद जब
मेरे भाई-बहन की तकलीफों में
साथ खड़े हुए जब,
आखिरी वक्त पापा-अम्मा को थामा जब
और…
मॉर्निंग-वॉक से लौटते हरसिंगार,चम्पा के,
ओस भीगे सुगन्धित फूल चुन कर
सिरहाने टेबिल पर सजा दिए जब…,
तब…तब…तब
हाँ,हर उस दिन मेरा ‘वैलेंटाइन-डे’ था तब।

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