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कैसा ये दिन आया…

डॉ.शैल चन्द्रा
धमतरी(छत्तीसगढ़)
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खुली हवा में कब साँस ले पाएंगे,
इस मास्क से कब निजात पाएंगे ?

सैनिटाइजर से कब मुक्त हो पाएंगे,
कब अपनों को गले लगा पाएंगे ?

घरों में कैद से कब छुटकारा पाएंगे,
कब हम पिकनिक पर जा पाएंगे ?

कब शादी-पार्टी में धूम मचा पाएंगे,
कब दोस्तों के साथ खिलखिला पाएंगे ?

जीवन रुका-रुका सा है,कब दौड़ पाएंगे,
कैसे कोरोना अब जाएगा,ऐ मालिक तू बता अब।

क्या करें कैसे सहें ये जुल्म अब,
कितना तरसना पड़ेगा अपनों के साथ के लिए अब।

कैसा ये दिन आया है सब दूर हो गए हमसे अब,
फिर से खुशियां आए इस चमन में करो कुछ ऐसा उपाय।

हर होंठ मुस्काए,न हो कोई निरुपाय,
आओ सब मिलकर इस कोरोना को भगाएं।

जीवन बगिया हो फिर से हरी-भरी ऐसा कोई उपाय अपनाएं,
फिर से सब मिलकर होली-दिवाली साथ मनाएं।

आओ सब मिलकर इस कोरोना को हराएं,
दूरी बना कर चलते रहें,मास्क पहन कर गीत गाएं।

सैनिटाइजर लगा कर ही अपनों से साथ निभाएं,
कुछ इस तरह कोरोना से बचें और बचाएं॥

परिचय-डॉ.शैल चन्द्रा का जन्म १९६६ में ९ अक्टूम्बर को हुआ है। आपका निवास रावण भाठा नगरी(जिला-धमतरी, छतीसगढ़)में है। शिक्षा-एम.ए.,बी.एड., एम.फिल. एवं पी-एच.डी.(हिंदी) है।बड़ी उपलब्धि अब तक ५ किताबें प्रकाशित होना है। विभिन्न कहानी-काव्य संग्रह सहित राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में डॉ.चंद्रा की लघुकथा,कहानी व कविता का निरंतर प्रकाशन हुआ है। सम्मान एवं पुरस्कार में आपको लघु कथा संग्रह ‘विडम्बना’ तथा ‘घर और घोंसला’ के लिए कादम्बरी सम्मान मिला है तो राष्ट्रीय स्तर की लघुकथा प्रतियोगिता में सर्व प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।सम्प्रति से आप प्राचार्य (शासकीय शाला,जिला धमतरी) पद पर कार्यरत हैं।

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