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जब भी कविता लिखने बैठूँ

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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जब भी कविता लिखने बैठूँ,
लिख जाता है नाम तुम्हारा।
खुल जाते हैं छन्द बंध भी,
नव शब्दों का बने सहाराll

दिल से दिल का बंधन है ये,
लगता है हमको ये प्यारा।
दिल ऊर्जा से भर जाता है,
होय सुवासित तन मन साराll

मन के भाव निकलते बाहर,
खुश होता ये दिल बेचारा।
जब भी कविता लिखने बैठूँ,
लिख जाता है नाम तुम्हाराll

प्यार नहीं शब्दों का बंधन,
ये जग में है सबसे न्यारा।
पावन प्रेम का बंधन है ये,
दिल से दिल अब मिले हमाराll

शब्द-शब्द में भाव भरा है,
करे शब्द ही मन उजियारा।
जब भी कविता लिखने बैठूँ,
लिख जाता है नाम तुम्हाराll

सदा नजर में तुम रहते हो,
मन में रहता भाव तुम्हारा।
कविता भी तुमसे ही आती,
तुम ही हो बस एक सहाराll

कविता ही माध्यम है केवल,
जिससे होता मिलन हमारा।
जब भी कविता लिखने बैठूँ,
लिख जाता है नाम तुम्हाराll

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा)डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बांदीकुई (राजस्थान) में जन्मे डॉ.सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी., साहित्याचार्य,शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ व्याख्यात्मक पुस्तक प्रकाशित हैं। कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपका साहित्यिक उपनाम ‘नवनीत’ है। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो 
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’