कुल पृष्ठ दर्शन : 235

क्यों मैं समझती रही

मौसमी चंद्रा
पटना(बिहार)

************************************************************************

तुम हमेशा वैसे ही थे
जैसे आज हो,
क्यों मैं समझती रही
तुम अलग हो।
मैंने तुम्हें हमेशा ही दिखाये
फूलों से लदे हरे-भरे पेड़,
तुमने देखा उसके नीचे गिरे
पीले पत्तों को।
मैंने तुम्हें हमेशा ही दिखाई
मोती से झड़-झड़ झड़ते,
बारिश की बूंदें,
तुमने देखा मिट्टी से सने
गन्दे पैरों को।
मैंने तुम्हें हमेशा ही दिखाये
विशाल नीला समंदर,
तुम्हारी नज़रें टिकी थी
उसकी तेज़ लहरों पे।
हर बार मैं तुम्हें दिखाती रही
प्यारी चिड़िया,सुन्दर फूल,तितलियाँ,
झील,उसमें उतरा चाँद और चमकते तारे
पर तुमने हमेशा ढूँढ ही ली
कोई कमी..।
तुम हमेशा वैसे ही थे,
जैसे आज हो…
क्यों मैं समझती रही,
तुम अलग हो…॥

परिचय-मौसमी चंद्रा का जन्म ४ जनवरी १९७९ को गया(बिहार)में हुआ हैl आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा पटना(बिहार) के जगनपुरा मार्ग पर हैl आपको हिंदी-अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान हैl बिहार राज्य की निवासी मौसमी चंद्रा ने स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है,तथा कार्यक्षेत्र में अध्यापक हैंl आपने सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत १५ साल भागलपुर शहर में बिता कर एक सामाजिक संस्था से जुड़े रह कर सेवा के कई कार्य (मुफ्त चिकित्सा शिविर,वृद्धाश्रम कार्य, सांस्कृतिक इत्यादि)किएl इनकी लेखन विधा-कहानी और कविता हैl प्रकाशन के अन्तर्गत विभिन्न समाचार-पत्र और पत्रिका में रचनाओं को स्थान मिला है। इनकी दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा और अमृता प्रीतम हैं। माँ और पति को प्रेरणापुंज मानने वाली मौसमी चंद्रा की विशेषज्ञता-नारी की दशा के लेखन में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे खून में है, सीधे अन्तरात्मा को स्पर्श करती हैl” विशेष उपलब्धि के लिए प्रतीक्षारत श्रीमती चंद्रा की लेखनी का उद्देश्य-“मन के अंदर की उथल-पुथल को शब्दों में ढालना है। वेवजह कुछ भी नहीं लिखना चाहती,ऐसा लिखना चाहती हूँ जो पाठक के मानस पटल से आसानी से न मिटे।”