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तेरे नाम…

अंशु प्रजापति
पौड़ी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
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कुछ गुस्ताखियाँ ऐसी हो रहीं हैं,
मेरी तस्वीर तेरी आँखों में खो रही है।
अब देख लो है तुम्हारी जो मर्ज़ी,
मेरी साँसों की डोर तेरी एक नींद की अर्ज़ी।
जब थक जाओ मेरी फरमाइशों से तुम,
तो कर लेना पलकें बन्द हो जाएंगें हम भी ग़ुम।
सिवा तुम्हारे याद आते भी हैं किसको हम ?
ये देख लेना जब नहीं रहेंगे इस जहां में हम।
जब हो जाए दूर हर शिक़वा,
तो आना कब्र पर मेरी और कह देना ‘बहुत हुआ।’
प्यार से थाम लेना फ़िर से हाथ मेरा तुम,
हवा बनकर साथ चल दूंगी जहाँ कह दोगे ‘चल दो’ तुम।
बस एक गुज़ारिश इतनी-सी है तुमसे,
हो जाए कुछ भी फ़िर न जाना दूर तब मुझसे।
तुम्हें हो न हो मुझे बेहद ज़रूरत है,
कि तेरा प्यार अब मेरी ज़िंदगी की क़ीमत है॥

परिचयअंशु प्रजापति का बसेरा वर्तमान में उत्तराखंड के कोटद्वार (जिला-पौड़ी गढ़वाल) में है। २५ मार्च १९८० को आगरा में जन्मी अंशु का स्थाई पता कोटद्वार ही है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली अंशु ने बीएससी सहित बीटीसी और एम.ए.(हिंदी)की शिक्षा पाई है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (नौकरी) है। लेखन विधा-लेख तथा कविता है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-शिवानी व महादेवी वर्मा तो प्रेरणापुंज-शिवानी हैं। विशेषज्ञता-कविता रचने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“अपने देेश की संस्कृति व भाषा पर मुझे गर्व है।”