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अटल रहे सदा

सौ. निशा बुधे झा ‘निशामन’
जयपुर (राजस्थान)
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‘अजातशत्रु’ अटल जी…

कहते हैं लोग,
सूरज का निकलना अटल
मोम का पिघलना निश्चित है,
फिर, तुम तो नाम से ही नहीं,
बातों में भी अटल रहे सदा।

हर कविता के शब्दों में अटल हो,
न झुके एक पल भी, दुश्मनों का सर झुका
शेर-सी दहाड़ रखने वाले,
भारत माँ के सच्चे तुम सपूत हो
सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित,
तुम कर्तव्यनिष्ठा के लिए समर्पित थे।

कदम-कदम पर चले, हर एक कठिनाई को चीर,
गीत नया गाया, गाई कविता के संग राष्ट्र की प्रीत
चंचलता से जीत लिया हर भारतीय का दिल,
चुप्पी साध बांध लिया, गगनचुंबी हर गीत।

मौत से ठनी जब, न बदली फिर भी कभी अपनी चाल,
गरज-गरज कर गूँज उठी वह थी बुलंद आवाज
दुश्मन भी चुप्पी साधे बैठ गया अपने-अपने देस।

नमन-नमन, प्रणाम,
अटल तुम तो रहे सदा मेरे दिल में
हर देशवासी के दिल में शताब्दी वर्ष खास है,
आज मंगल गीत गूँज उठे।
फिर भी कमी जो थी तुम्हारी,
इस अनमोल पल में॥