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अन्तर मन इतरा गया

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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वसंत पंचमी: ज्ञान, कला और संस्कृति का उत्सव…

तन के पत्ते हो गए, हरियर आज अनन्त।
अन्तर मन इतरा गया, बाहर देख बसन्त॥

यौवन घट की कामना, महकी हुई बयार।
तन के तट को भा गया, फूलों का त्यौहार॥

कोयल बोले बाग़ में, महकी, महुआ गन्ध।
मन की कुंडी खुल गई, पात-पात अनुबंध॥

फूलों का यौवन खिला, सर पर पहना ताज।
रुक-रुक ले अँगड़ाइयाँ, मन का मौसम आज॥

तन के टेसू खिल गए, पाकर सुमन समीर।
मन अपना मीरा हुआ, जोगन फिरे अधीर॥