हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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भोर की बेला,
ओस की बूँदें
हरी-भरी वसुंधरा,
सूरज की लालिमा।
नई सुबह नयापन,
सकारात्मकता का उजाला
सभी इसमें समाहित,
चारों और सूरज की लालिमा।
नई सुबह नए विचार,
आगाज हो गया संकल्पों का
छोड़ पुरानी बातों को,
फैली है सूरज की लालिमा।
बीत गया वहाँ कल था,
आज फिर नई सुबह है
नए शब्दों का श्री गणेश हो,
इसी लिए आई है सूरज की लालिमा।
संकटों के भंवर में,
बदलों की काली बदरी छंट गई।
नया है सवेरा, नई राह हमें पाना है,
तभी तो आईं है सूरज की लालिमा…॥
