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ऋषि वाल्मीकि युगों का मान

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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वाल्मीकि जयंती विशेष…

जिसने रची ‘रामायण’ मर्यादा की शान,
वह ऋषि वाल्मीकि, युगों-युगों का मान।

वन की नीरव गहराइयों में, ज्ञान का दीप जलाया,
अंधकार मिटा कर, मानवता का संदेश चलाया।

डाकू से ऋषि बने, ये परिवर्तन की गाथा है,
संघर्षों में ढूँढ ली, आत्मा की परिभाषा है।

कलम ने जब छुआ, सत्य और प्रेम का सुर,
हर शब्द बना जैसे, प्रभु का मधुर नूर।

उन्होंने सिखाया-“हर मन में है राम”,
बस जाग उठे अगर, अंतःकरण का धाम।

भूलों को त्याग, कर्मपथ चुनो सही,
जग में फैलाओ, उजियारा हर कहीं।

वाल्मीकि जी के शब्द, आज भी जीवन दें,
हर हृदय में नव आरंभ का स्पंदन लें।

वाल्मीकि जी का जीवन है प्रेरणा का प्रकाश,
जिससे मिटे अज्ञान, बढ़े सदा विश्वास।

आओ प्रण करें-ज्ञान का दीप जलाएँगें,
सत्य, प्रेम, करुणा से जीवन सजाएँगें।

चलो उनके पदचिन्हों पर, सृजन करें नया,
हर अंधकार को हराकर, जग में बनें प्रकाश सदा॥