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एकांत में ही भक्ति

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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हिलाने-डुलाने से दही नहीं जमता,
एकांत में ही मन प्रभु भक्ति रमता।

ज्ञान, भक्ति, कर्म प्रभु-कृपा से मिल जाते जब,
मिट जाती सारी जीवन में अहमता।

रूप, धन का दबदबा प्रभु-भक्ति मिटा देता है,
भोगचक्र फंस तू हर योनि में जनमता।

खिल्ली उड़ा-उड़ा के खुश हों जो ग्रंथ, संत,
आ जाती उनके जीवन में विषमता।

भक्त मानें चिपचिपा यह संसार कटहल-सा,
प्रभु भक्ति तेल लगा जग में सुगमता।

जहाज में दिशा दिखती कम्पास- काँटे से,
कम्पास प्रभु भक्ति मन प्रभु में थमता।

पकड़े जो प्रभु-चरण अपनी पूरी ताकत से,
माया मोह बंधन फिर नहीं मन में जमता।

माना कि तुम बंधे हो जग रिश्ते- नातों में,
चालाकी भजन करो रख प्रभु में ममता।

मूक प्रार्थना सदा करते रहो व्याकुल मन से,
योग्य समय मुक्ति देवें है प्रभु में क्षमता।

हिलाने-डुलाने से दही नहीं जमता,
एकांत में ही मन प्रभु भक्ति रमता॥