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‘ऑपरेशन सिंदूर’:बेहतर हो कि विपक्ष चर्चा ही करे

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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संसद में चर्चा से भागना विपक्ष की रणनीति तो नहीं होनी चाहिए क्योंकि देश को भी यह जानने का अधिकार है कि आखिर सच क्या है, विपक्ष का लगातार हंगामा देखकर ऐसा लगता है कि वो सच को बाहर आने से रोकने में लगे हुए हैं। ऐसे में सवाल यह है कि जब सरकार की बात पर भरोसा ही नहीं तो इस बातचीत में शामिल क्यों हुए ? क्या विपक्ष का यह रवैया सवालों के घेरे में नहीं है ?
देश के सर्वोच्च मंदिर लोकसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर शुरू हुई बहस को लेकर विपक्ष का रवैया एक बार फिर सवालों एवं शंका के घेरे में है। सरकार ने विपक्ष की १६ घंटे की विस्तृत चर्चा के लिए मंच तैयार किया, पर विपक्ष ने पहले ही क्षण से शोर-शराबा कर साबित कर दिया कि उसके पास सवाल कम एवं लेकिन सियासी नाटक ज्यादा है और वही करना उसे बखूबी आता है और किया भी जाएगा।
दरअसल, इस संवेदनशील राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा की शुरूआत विपक्ष को बहुत अच्छी करनी थी, ताकि देशवासियों को भी लगता कि संसद में बस हंगामा ही नहीं होता, सार्थक बातचीत भी होती है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुरूआत करते हुए सेना के पराक्रम, बलिदान और कूटनीतिक कौशल की सराहना की, लेकिन विपक्ष ने गंभीर चर्चा की जगह संसद को अखाड़ा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को हस्तक्षेप कर बहस को स्थगित करना पड़ा, जो संकेत है कि यह विपक्ष की ‘बहस से भागने की तय रणनीति’ है।
इस हंगामे पर भाजपा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने सटीक टिप्पणी की कि “जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत मांगे थे, वे आज भी ऑपरेशन सिंदूर पर संदेह कर रहे हैं।दरअसल, यह राष्ट्रहित नहीं, केवल वोट बैंक के हित में की जा रही राजनीति है।” बड़ा सवाल यह है, कि विपक्ष को सरकार की किसी बात और अभियान पर अगर भरोसा ही नहीं है तो फिर चर्चा में आए ही क्यों ? कारण कि दिनभर की चर्चा के बाद भी अविश्वास तो बनाए ही रखना है न।
इधर, पूर्व अनुभवी मंत्री और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने आग में घी डालने का बयान देकर चर्चा को और तीखा कर दिया। इनका यह पूछना कि “आप कैसे मानते हैं कि आतंकी पाकिस्तान से आए थे ?” बेहद ही अतार्किक, अविश्वासी और भारतीय सेना एवं खुफिया एजेंसियों की क्षमता पर अविश्वास करना है। सरकार ने जब पाकिस्तान की पनाहगाहों तक स्ट्राइक की बात कही, तो विपक्ष को अपने सुर बदलने चाहिए थे, लेकिन अब भी ‘राजनीति पहले, देश बाद में’ की लाइन पर अड़ा रहना बता रहा है कि जनता को दिखाने के लिए यह सब दिखावा किया जा रहा है।
इस मुद्दे पर सीधा सवाल यह है, कि भले ही केन्द्र सरकार झूठ बोल रही हो, पर जब बहस तय थी, जवाब तय थे, मंच तैयार था तो फिर विपक्ष ने हंगामा क्यों किया ? उनको बोलने तो देते। कहना गलत नहीं होगा कि विपक्ष समझ गया और जानता भी है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (पहलगाम में २२ अप्रैल को २६ लोगों की हत्या का प्रतिकार लेना) केन्द्र सरकार की एक बड़ी सैन्य व कूटनीतिक सफलता है, और यदि वास्तविक तथ्य सामने आ गए तो उनका लगातार बोला जा रहा झूठ धराशायी हो जाएगा। इसलिए कांग्रेस सहित अन्य ने मुद्दे को चर्चा से भटकाकर हंगामे में डुबोने की कोशिश की है। सम्भवत: विपक्ष की रणनीति यह है कि “सुनना ही नहीं है”, ताकि कोई जवाब आम जनता तक पहुंचे ही नहीं।

विपक्ष को अब समझना पड़ेगा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल एक सैन्य विजय नहीं, बल्कि यह राष्ट्र की संप्रभुता, सैनिकों के अद्भुत शौर्य और भारत की विदेश नीति की निर्णायक दृढ़ता का प्रमाण है। विपक्ष इस पर जैसी राजनीति कर रहा है, वह दरअसल अपने ही राजनीतिक भविष्य को खंडहर में बदल रहा है। इसके लिए विपक्षी दलों को भविष्य में अफ़सोस ही होगा। इसलिए अभी भी समय है कि बौखलाने की अपेक्षा चर्चा में ईमानदारी से भाग लीजिए एवं देशहित में संवाद का प्रयास करें।