डॉ. गायत्री शर्मा’प्रीत’
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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रंग बरसे…(होली विशेष)…
चुनर भीगी जा रही, कान्हा खेलें फाग।
भर पिचकारी मारते, करते हैं अनुराग॥
बरजोरी कान्हा करे, फागुन के दिन चार।
रहते राधा साथ वो, गल फूलों का हार॥
रंग अनोखे उड़ रहे, खेलें होली आज।
ढोल-मजीरे बज रहे, सजे अनोखे साज॥
होली खेले मोहना, मिल सखियों के साथ।
राधा उनके संग है, ले हाथों में हाथ॥
होली का त्यौहार है, रंगों की बौछार।
पिचकारी ले हाथ में, निकली घर से नार॥
फागुन आया झूम के, नाचें गोपी संग।
मतवारे मनमोहना, खेलें होली रंग॥
आँखें उनकी झील-सी, दूँगी तन- मन वार।
राधे की राधा बनूँ, मैं अलबेली नार॥
होली आई है सखी, साजन हैं परदेस।
कैसे भेजूं मैं उन्हें, चिट्ठी या संदेश॥
गले मिलें सब प्रेम से, मची बिरज में धूम।
जमा फाग का रंग तो, नाच रहे सब झूम॥
रंग फाग का जम रहा, कृष्ण नाचते आज।
गोप गोपियाँ सज रहे, सजे अनोखे साज॥
फाग गीत बजने लगे, मचा हुआ है शोर।
झूम उठे वन में सभी, नाच रहा है मोर॥
फाग रंग रंगे हुए, रंग लगायें लाल।
निकल रहे बन गोपियाँ, तिलक लगाये भाल॥
पुष्प खिले हैं बाग में, भ्रमर करे गुँजार।
फूल बनी कलियाँ सभी, बहे प्रेम की धार॥