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करा दिया था आत्मसमर्पण

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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शूरवीर भारतीय सेना (विजय दिवस विशेष)…

दुश्मन ने हमको जब-जब ललकारा है,
भारत के वीर सैनिकों ने उनको धूल चटाई है
सेना की हुंकार से रणभेरी का बिगुल बज उठा था,
सबने आपस में हाथ से हाथ मिला कर
दुश्मन को दिन में तारे दिखलाए थे।

गोली चलाते, हैंड बम दागते दुश्मन के टैंकों को रौंदते,
आगे और आगे बढ़ते चले गए
सैनिकों के पास युद्ध सामग्री बहुत नहीं थी,
परंतु उन सबमें हौसला बहुत बड़ा था
उन सब पर देशभक्ति का जोश चढा था।

प्रतिशोध की आँधी ज्वालामुखी की
आग बन धधक उठी थी,
चारों ओर जयहिंद का नारा गूँज उठा था
हर सैनिक के लहू की बूँद-बूँद
बोल उठी थी ‘जय भारत माँ’,
एक ही बोली गूँज रही थी ‘हर-हर महादेव’
जयकारा गूँज रहा था, ‘जय शेरा वाली माँ’,
साथ में आई थी आवाज, ‘बोले सो निहाल… सतश्री अकाल’
सैनिकों ने बिछा दी थीं एक के ऊपर एक लाशें,
जीतते गए थे रण में हर चौकी को
रक्तरंजित कर तन दुश्मन का
लहरा उठा था विजयी तिरंगा प्यारा।

जल थल नभ सेना ने संग आगे बढ कर,
पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बाँट दिया था
विश्व अचंभित होकर देख रहा था
सेना की ढाका विजय को,
सीमा लाँघी थी दुश्मन ने
गिरा अपनी ताकत के बम,
हाथों-हाथ जवाब दिया हिंद की सेना ने।

मिटा दिया १६ दिसंबर को दुश्मन का नापाक दंभ,
करा दिया था आत्मसमर्पण दुश्मन सेना को
पहना कर पराजय की बेड़ी का गहना,
लहरा दिया था तिरंगा दुश्मन भूमि पर
जय हिंद की सेना…।
जय हो हमारा तिरंगा प्यारा
जय हो ‘विजय दिवस॥