सोनीपत (हरियाणा)।
कल्पकथा साहित्य संस्था परिवार द्वारा आयोजित ‘हिन्दी दिवस’ विशेष आभासी काव्य गोष्ठी में सभी साहित्यकारों ने हिन्दी भाषा के सम्मान में शाब्दिक हिन्दी वंदन किया। इस २१४वीं साप्ताहिक काव्य संध्या की अध्यक्षता वाराणसी से जुड़े विद्वान अवधेश प्रसाद मिश्र ‘मधुप’ ने की, जबकि मुख्य अतिथि रायपुर से प्रबुद्ध साहित्यकार प्रमोद पटले रहे।
परिवार की संवाद प्रभारी ज्योति राघव सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय कलमकार भास्कर सिंह ‘माणिक’ के संचालन में कार्यक्रम का शुभारंभ नागपुर से सृजनशील रचनाकार विजय रघुनाथराव डांगे द्वारा माता सरस्वती की वंदना के साथ हुआ। कोने-कोने से जुड़े रचनाकारों ने अपने रचना कौशल से संध्या को स्मृतिकोष में संरक्षित कर दिया। इटावा से भगवानदास शर्मा ‘प्रशांत’ ने ‘हिन्दी भाषा हिए में रखकर मन ही मन इठलाता हूँ, हिन्दी है अभिमान हमारा वन्दे मातरम गाता हूँ” से सभी को अभिभूत कर दिया। कल्पकथा संस्थापक राधाश्री शर्मा ने ‘सिया की प्रतीक्षा’ सृजन से हिन्दी भाषा के समृद्ध शब्दकोश से परिचय करवाया। अमित पण्डा ने कहा “है कोई बोली कोई भाषा जिसमें है हर भाव भरा, जो आँसू का मर्म बता दे घाव बता दे कितना हरा॥” श्री डांगे ने ‘हिन्दी हैं हम’ रचना के गायन के साथ पूरे कार्यक्रम में रंग भर दिया। श्री पटले ने ‘हम हिन्दी भाषी’ रचना सुनाई तो परिवार की ओर से पवनेश मिश्र ने कहा कि “हिन्दी है भारत की भाषा, गौरव है सम्मान है, गर्व से बोलो हिन्दी हैं हम, हिन्दी का अभिमान है।”
अध्यक्ष ‘मधुप’, डॉ. श्याम बिहारी मिश्र, संपत्ति चौरे ‘स्वाति’, मिलन उपाध्याय, गोपाल कृष्ण बागी, विष्णु शंकर मीणा, शशि भूषण मिश्र आदि ने भी काव्य पाठ द्वारा दर्शकों का मन मोह लिया। मुख्य आकर्षण विचारक एवं प्राचार्य गोपाल कृष्ण बागी द्वारा प्रस्तुत चर्चा रही, जिसमें हिन्दी भाषा की स्थिति और उसके कारणों समेत राष्ट्र भाषा बनाए जाने की मांग रखी गई। चर्चा में डॉ. मिश्र, सुनील कुमार खुराना आदि ने भी सहभागिता की।
अध्यक्षीय उद्बोधन में ‘मधुप’ ने कहा कि हिन्दी भाषी होने के नाते यह हमारा सौभाग्य है कि हमें विश्व की सबसे प्राचीन, समृद्ध, उन्नत, समावेशी, भाव सम्पन्न, भाषा परिवेश में जीवन जीने का अवसर मिला। श्री पटले ने कहा कि एक परिवार के रूप में हम सभी हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए संकल्पित हैं।
राधाश्री शर्मा ने सभी का आभार माना।