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गणपति घर आइए

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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गणपति घर मोरे आइये, शिवनन्दन देवेश अघारी,
गणपति बप्पा मौर्या वंदन, वंदना गणेश तुम्हारी
पद सरोज गणपति नमन विनत, करूँ गजानन आज तुम्हारी,
उमातनय परमेश गजानन, स्वस्ति लोक गणराज हमारी।

गणनायक पूजन पद पावन, हे अच्युत विघ्नेश तुम्हारा,
गजमुख वरदायक सुखदायक, कुमति हरो बुद्धेश हमारी
एकदन्त गिरिजा प्रिय तनय, शरणागत करुणेश हमारी,
रक्ताम्बर शुभ गात्र लम्बोदर, गौरीनन्द शुभ करो हमारी।

मंगलेश गौरीतनय मुदित, गणनायक बुद्धीश हमारा,
वाहन मूषिकराज विपद जग, जगपालक जगदीश हमारा
पंचदेव में तुम्हीं पूज्य प्रभु, गणभूतों के नाथ विहारी,
सकल मनोरथ सुपथ पूर्ण प्रभु, बुद्धि विधाता करो हमारी।

हे गणेश सानंद लोक कर, नित सुखमय दुनिया कर सारी,
सब पापों को प्रभो दूर कर, विश्व शान्ति उपहार विचारी
राग द्वेष छल मृगतृष्णा जग, फँसे हुए जन दुनिया सारी,
बुद्धि विनायक त्राण करो अब, घृणा स्वार्थ हठयोग हमारी।

मातु-पिता परिक्रमा त्रय बार पूज्य देव कर विजय तुम्हारी,
ज्ञान बुद्धि सच तेज मनोबल,रहे लोक में कृपा तुम्हारी
देवासुर ऋषिगण मनुज कठिन, तन-मन नित साधना तुम्हारी,
सब विघ्नों को करे पार जग, देहि कीर्ति अतुलित बलधारी।

दीप जला पूजन अर्चन कर, थाल सजा कर करूँ आरती,
हर ‘निकुंज’ संताप त्रिविध जग, भवसागर से मुक्ति हमारी।
हे विघ्नेश्वर क्षमादान कर, ज्ञानहीन कृत पाप हमारा,
जगन्नाथ तेरा सत्पूजन, हे गणेश अच्युत शुभकारी॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥