कुल पृष्ठ दर्शन : 7

घर-आँगन बुलाता है…

दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
*************************************

होली या दिवाली हो,
या हो राखी का त्योहार
जब हो आहट त्योहारों की,
घर-आँगन बुलाता है।

दादाजी की नसीहतें,
या दादी की मीठी बातें
माँ के हाथों का खाना अब भी,
मन में स्वाद जगाता है।
घर-आँगन बुलाता है…

कांक्रीट की दीवारों में,
जब मिट्टी का सौंधापन याद आता है
शहर की चकाचौंध के बीच,
जब गाँव का मेला याद आता है।
घर-आँगन बुलाता है…

शहर की भागती-दौड़ती ज़िंदगी में,
कभी मन ठहर-सा जाता है
जहां हँसी गूंजती थी बेफिक्र,
वो आलम याद आता है।
घर-आँगन बुलाता है…

छूट गए जो रिश्ते पुराने,
वो आज भी मानों बुलाते हैं।
जहां मुस्कुराता था मेरा बचपन,
वो गाँव बहुत याद आता है…॥
घर-आँगन बुलाता है…