कुल पृष्ठ दर्शन : 14

घर में व्यस्त स्त्रियाँ

डॉ. विद्या ‘सौम्य’
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
************************************************

घर में व्यस्त स्त्रियाँ-
अक्सर…
क़ैद हो जाती हैं,
दीवारों के बीच
बुनती रहती हैं ख़्वाब…
सजीले आँखों से,
घर के कोनों को सजाती हैं
अपनी वेदनाओं को,
भित्ति चित्रों के रंगों में डुबोकर
गाढ़ा कर…

निखार देती हैं,स्वर्ण की तरह,
तपती रहतीं हैं
जीवन की पगडंडियों पर,
चलते-चलते…
सिंचित कर देती हैं,
खेतों और खलिहानों को।

घर में व्यस्त स्त्रियाँ-
मृदंग-सी बजती रहती हैं,
भावों में, अभावों में,
तानों में, मेहमानों में

मेंहदी-महावर, तीज-त्योहारों में,
शुभ-लग्न, विवाह-मंडप के गानों में
हाँ…
हर जगह वही तो है.. व्यक्त,
सत्ता में भी, सृजन में भी
कर्ता-अनुकर्ता में भी,
हाँ, है…
उसी का साहित्य, उसी की कला,
उसी की रंगत और फलसफा।

घर में व्यस्त स्त्रियाँ-
बना लेती हैं परिंदों की तरह,
एक सुंदर, बुनी हुई रस्सी-सा घोंसला
जिसको उजड़ जाने में,
वक्त ही नहीं लगता
हाँ…
मिट जाने में, टूट जाने में,
बिखर जाने में, निखर जाने में
बस कुछ ही पल,
हाँ…
कुछ ही क्षण,
पर हो जाता है पुनः सृजन
बसंत के आगाज़ की तरह,
अर्जित कर लेती हैं।
नव सृजित शक्तियाँ
घर में व्यस्त स्त्रियाँ॥