उर्मिला कुमारी ‘साईप्रीत’
कटनी (मध्यप्रदेश )
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जीवन एक मधुर संगीत की तरह होता है,
कभी उदासी-सा तो कभी गमगीन होता है…।
शब्दों का अंतर है, वो कहाँ से कहाँ सफ़र करता है,
शब्दों के अंतर जाल में फंसकर, एक लगाव हो जाता है…।
दर्द मिले या खुशी, सभी का अनुभव हो जाता है,
उसी पथ पर खुद को अग्रसर कर कदम बढ़ जाता है…।
ऊँच-नीच का सोचना ही तब बुध्दि कुबुध्दि बन जाती है,
कहाँ अच्छी विचारधारा फिर मन में उमड़ती है…।
संगीत ही कुछ इस तरह झनकार बन जाता है,
मंजिल मिले या ना मिले, अपनी धुन में चला जाता है…।
पीछे क्या खोया और किसकी तलाश में आगे बढ़ता है,
यह दिल है जनाब, तनाव में किधर निकल जाता है…।
पश्चाताप की अग्नि में खुद को जलाए फिरता है,
प्यार की चाहत में खुद को एक संगीत बनाए फिरता है…॥