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तृष्णा है तिमिर

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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तृष्णा है ऐसा तिमिर, लिप्त अंध इन्सान।
शील त्याग सत्कर्म तज, सहता नित अपमान॥

अति तृष्णा मद क्रोध से, भटक रहा इन्सान।
चलें झूठ छल कपट पथ, हिंसक जग शैतान॥

तृष्णा कलियुग महाबली, सत्य न्याय आचार।
पतन नहुष सम हो विकट, कामुक मन लाचार॥

काम क्रोध मद लालची, सब अनीति बन नीति।
अपनापन धन सम्पदा, हो तृष्णा क्या प्रीति॥

मनरोगी विक्षिप्त पथ, कुसंस्कार निर्लज्ज।
तृष्णा में फँस जिंदगी, दुष्कर्मी नित सज्ज॥

तृष्णा ऐसी व्याधि है, बाल युवा हो वृद्ध।
चले साथ जीवन्त तक, लक्ष्य मात्र श्रीवृद्ध॥

मीत चले सुनीति पथ, अन्तर्मन परमार्थ।
मनतृष्णा से दूर नित, मीत प्रीत सम पार्थ॥

टिकी मित्रता स्वार्थ अब, कैसे हो विश्वास।
कौन किसे दे कब दगा, छले करे उपहास॥

लोभी तृष्णा बन खली, लूट रहा जनतंत्र।
त्याग सत्य परमार्थ तज, भारत आज स्वतंत्र॥

भ्रष्ट तंत्र व्यभिचार अहि, डसता मानव लोक।
लोभ, मोह, तृष्णा, प्रबल, निर्भय रोगी शोक॥

कामचोर चमचागिरी, आभूषण वरदान।
पद तमगा तृष्णा विकल, चाहे जो अपमान॥

कवि ‘निकुंज’ आश्चर्य से, लखि तमगों का खेल।
शर्मशार शिक्षा जगत, चापलूस गठमेल॥

भूले कौलिक आचरण, बन चारण आसन्द।
जमीं भीड़ तृष्णा विकल, पाने को मकरन्द॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥