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‘दीपावली’ का वैश्विक होना सांस्कृतिक आत्मा की विजय

ललित गर्ग

दिल्ली
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‘यूनेस्को’ द्वारा दीपावली को अमूर्त विश्व धरोहर घोषित किया जाना भारत की सांस्कृतिक चेतना का ऐसा महत्त्वपूर्ण क्षण है, जो न केवल भारतीयों को गौरवान्वित करता है बल्कि यह सिद्ध करता है कि भारतीय सभ्यता की आत्मा आज भी मानवता का मार्गदर्शन करने की क्षमता रखती है। दीपावली मात्र एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन, आत्मा, संबंध, समरसता और विश्वबंधुत्व का प्रकाशग्रंथ है। यह वह विरासत है जो हजारों वर्षों से मानव को अंधकार से प्रकाश, अज्ञान से ज्ञान, ईर्ष्या से प्रेम और भय से विश्वास की यात्रा पर ले जाती रही है।
दीपावली की महिमा को समझना अर्थात भारतीय संस्कृति की गहराई को समझना है। यह संस्कृति केवल मंदिरों, शास्त्रों, उत्सवों और अनुष्ठानों में नहीं बसती, बल्कि मनुष्य की स्मृति, संवेदना, आस्था और जीवन व्यवहार में प्रवाहित होती है। इसीलिए इसे ‘अमूर्त’ कहा जाता है, क्योंकि यह मूर्त नहीं, परंतु सबसे अधिक जीवंत है। दीपावली इसी जीवंतता का सर्वोच्च उत्सव है।
जब अयोध्या की रामपैड़ी पर २६.१७ लाख दीपकों ने एकसाथ जगमग होकर दुनिया को चमत्कृत किया, तब वह दृश्य सिर्फ दीयों का समुद्र नहीं था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक रोशनी का वैश्विक उद्घोष था। एक ऐसा उद्घोष, जिसने दुनिया को यह विश्वास कराया कि भारत की परंपराएं आज भी सार्वभौमिक प्रेरणा शक्ति हैं। ‘यूनेस्को’ का निर्णय इसी चमत्कार की परिणति है।
दीपावली के केंद्र में केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है। यह पर्व मनुष्य को याद दिलाता है कि हर कठिनाई, हर पीड़ा, हर अंधकार के भीतर एक दीप जलने की संभावना छिपी होती है। हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख परंपराओं में दीपावली का अलग-अलग महत्व है, मगर संदेश एक ही है, प्रकाश का मार्ग ही मानवता का मार्ग है। यही अखंड संदेश अब विश्व स्तर पर मान्यता पा रहा है।
भारत की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरें सदैव मानव-कल्याण की प्रेरक रही हैं। कुंभ, वैदिक मंत्रोच्चार, रामलीला, योग, दुर्गा पूजा जैसी परंपराएँ पहले से विश्व धरोहर सूची में शामिल रही हैं। दीपावली के जुड़ने से यह सूची और उज्जवल हुई है। दीपावली यूनेस्को के उस उद्देश्य को पूर्ण रूप देती है, जिसमें कहा गया है कि मानवता की सबसे बड़ी शक्तियाँ वे परंपराएँ हैं जो समय के साथ खो न जाएँ।
दीपावली भारतीय समाज की आर्थिक, सामाजिक और मानवीय संरचना को एक गहरा संदेश देती है। एक छोटा कुम्हार, जो अपने हाथों से दीए बनाता है, उसी दीए की रोशनी से करोड़ों घर रोशन होते हैं। एक छोटे व्यापारी की दुकान भी दीपावली पर उतनी ही महत्वपूर्ण होती है, जितनी बड़ी कम्पनी की। यह त्योहार बताता है कि समाज प्रकाश तभी बनता है, जब हर व्यक्ति के जीवन में रोशनी पहुंचे। इसीलिए यह उत्सव भारतीय सामुदायिक चेतना का उत्सव है, समता और समान अवसरों का उत्सव है।
भारत ने सदियों से दुनिया को यही बताया है कि नैतिक साहस, सद्भाव, शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा ही सभ्यताओं को टिकाऊ बनाती है। दीपावली इस सत्य का प्रत्यक्ष प्रतीक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आधुनिक सोच और सांस्कृतिक कूटनीति ने भारत की इन अवधारणाओं को दुनिया के सामने नई ऊर्जा के साथ स्थापित किया है। योग की वैश्विक मान्यता हो, आयुर्वेद का उभार हो, रामायण सम्मेलन हो या भारतीय त्योहारों का अंतरराष्ट्रीयकरण, यह सब भारत की विनम्र ताकत की विजय है। दीपावली को यूनेस्को सूची में शामिल किया जाना इसी विनम्र ताकत की अगली खूबसूरत सीढ़ी है।
मोदी का ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का मंत्र अब भारत की विदेश नीति ही नहीं, बल्कि विश्व-दृष्टि बन चुका है। इसी भावना ने वैश्विक मंचों पर भारत की पहचान को मजबूत किया है। दीपावली का वैश्विक सम्मान इसी मंत्र का विस्तार है, क्योंकि यह त्योहार हर मानव को यह याद दिलाता है कि दुनिया एक है, पीड़ा साझा है, और आनंद भी साझा होना चाहिए। यही कारण है कि इसे विश्व धरोहर घोषित करना पूरी मानवता के आध्यात्मिक भविष्य को मान्यता देना है। यूनेस्को की घोषणा के बाद अब दुनिया दीपावली को केवल भारतीय या धार्मिक त्योहार के रूप में नहीं देखेगी, बल्कि इसे वैश्विक नैतिक चेतना के रूप में स्वीकार करेगी।
निस्संदेह, दीपावली का वैश्विक होना भारत की सांस्कृतिक आत्मा की विजय है। यह वह क्षण है जो बताता है कि भारत केवल एक भू-राजनीतिक शक्ति नहीं, बल्कि मानवता का आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी है।