पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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शूरवीर भारतीय सेना (विजय दिवस विशेष)….
जब सुनती हूँ १९७१ के वीरों की गाथा
गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है,
मैं भी इस वीर भूमि में रहती हूँ
यह सोच कर गर्वित हो उठती हूँ।
जब भी पढ़ती-सुनती हूँ
वीरों की कुर्बानियाँ,
दिल में हूक-सी उठती है
आँखों से अश्रु झर-झर बह उठते हैं।
उजड़ गए वीर सैनिकों के परिवार
इस बात पर दिल द्रवित हो उठता है,
टूट कर बिखर गई दुल्हनों की चूड़ियाँ
सूनी हो गईं अनेक कलाइयाँ,
माताओं की गोदें सूनी हो गई
तो मिट गया सुहागिनों की माँग का सिंदूर,
धरती हो गई थी वीरों के खून से लाल
लाशों का लग गया था अम्बार।
युद्ध की भेंट चढ़ गए थे
भारत भूमि के बहादुर लाल,
आज १६ दिसंबर को हम मनाते
‘विजय दिवस’…
आज के दिन हम मनाते,
भारत की अखंडता का यश
नमन् करती हूँ देश के वीरों का,
राष्ट्र के शूरवीरों सीमा प्रहरियों का
जिनके कारण हम चैन की नींद सोते हैं,
नमन् करता है पूरा देश आज
युद्ध में शहीद हुए उन रणबांकुरों का।
चमक रहे हैं दूर गगन में
बनकर शहीद सब चाँद और तारे, बन कर
उनकी किरणों से चमक रहे हैं हम सब
इन्हीं शहीदों ने बहाया था
बेखौफ होकर अपना रक्त लाल,
इन सबकी शहादत के कारण ही
हम सब जी रहे खुशहाली से।
नमन् करती हूँ उन वीर शहीदों के परिवारों को
जिन्होंने भेज दिए थे युद्ध के लिए अपने लाल,
हमारे वीर टूट पड़े थे अपनी जान हथेली पर लेकर
कर दिया था दुश्मनों का हाल बेहाल,
नमन् करती हूँ भारत राष्ट्र की अखंडता का
देश की अस्मिता का,
नमन् करती हूँ हर शहीद की माता का।
नमन् करती हूँ आज मैं
हर वीर शहीद की पत्नी को,
जिन्होंने अपने सुहाग को सीमा पर भेजा था
नमन् उन वीर शहीदों को जिनकी,
कुर्बानी के कारण आज हम ‘विजय दिवस’ मना रहे
पूरा देश नमन् करता है वीर सैनिकों का।
नमन् है उन शूरवीर सैनिकों का,
जिन्होंने अपनी बहादुरी से देश को जीत दिलाई॥