दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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पाई-पाई जोड़कर जीवन की गाड़ी चलती,
माता-पिता की मुट्ठी में देखो घर की दुनिया पलती
बचपन की मासूम ख्वाहिशें सपना बन मुस्कातीं,
कभी किताबें, कभी खिलौने,कभी नए कपड़ों को नजरें ललचाती।
पाई-पाई जोड़कर सपनों की बुनियाद रखी,
अरमानों को ताक पर रख, घर की गाथा लिखी
बच्चों को भरपेट खिलाकर माँ-बाप ने निवाला खाया,
अपनी मेहनत के पसीने से हर सपना सच बनाया।
पाई-पाई जोड़ पिता ने जीवन को सहज बनाया था,
दुनिया की नजरों में कम था, पर हमने बहुत कुछ पाया था।
थाली में रोटी जितनी भी हो, प्रेम सदा मुस्काया था,
माँ की ममता की छाँव में हर त्यौहार मनाया था॥
