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पाते पुरखे तृप्ति

आचार्य संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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श्राद्ध, श्रद्धा और हम (पितृ पक्ष विशेष)….

सत्य सनातन धर्म संस्कृति,
वैदिक ज्ञान संग वेद पद्धति
पुराण, ग्रंथ, श्रीकृष्ण की उक्ति,
वाल्मीकि, तुलसी जस भक्ति।

श्राद्ध कर्म हृदय स्वभाव अभिव्यक्ति,
पाते पुरखे, भाव भक्ति व वंश से तृप्ति
श्रद्धा समर्पित करें, पिंडदान दे मुक्ति,
देवताओं का यही कथन और उक्ति।

माता-पिता जीवन-चक्र देव तुल्य मूर्ति,
उनके स्नेहाशीष कुल व धर्म की पूर्ति
श्राद्ध-श्रद्धा पुरखों के सम्मान की वृत्ति,
दादा-दादी, नाना-नानी देते मान स्वीकृति।

पुरखें तरते पितृ पक्ष में,
घूमते फिरते इसी पक्ष में
पिंड मांगते कुल मोक्ष में,
तृप्त करें, उन्हें हम परोक्ष में।

पितृ पक्ष में तड़पे सब पितर,
जल से बाहर जल के भीतर
घर के बाहर, घर के भीतर,
माया-मोह-मोक्ष से इतर।

जल तर्पण को तरसें पितर,
झांकते नदी, तालाब निरंतर
छोड़ बेटे, पोते, प्रपोते का अंतर,
पुरखें फल दें सदा समांतर।

गंगा, यमुना, सरस्वती मोक्ष दायिनी,
तीरथ प्रयागराज है उत्तर वाहिनी
अर्पण, तर्पण, समर्पण शुभकामिनी,
वैतरणी बेड़ा पारिणी है सर्वोतारिणि।

काशी, वाराणसी में खुलते बैकुंठ द्वार,
मणिकर्णिका पर मांगे पुरखे स्व उद्धार
जिनकी मृत्यु सच में हुई काशी माँ गंगे जलधार,
पहुँचे सदा बैकुंठ वो, मानें परिजन का उपकार।

हम करें सेवा समर्पित जीवन में माँ- बाप को,
यक्ष प्रश्न ये खड़ा है पितृ पक्ष क्यों जाप को
सनातन संस्कृति प्रेरणा है मुक्ति दे अभिशाप को,
महादान पिंडदान है मोक्ष से संताप को।

भारत में आदिकाल से प्रसिद्ध है गया जी,
जहाँ अंतिम पिण्ड दान पाए राजा दशरथ जी।
फल्गु नदी धन्य हुई, अभिशप्त की सीता जी,
विष्णु पद करे तृप्त पुण्यात्मा व आत्मा कहते गया जी॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे आचार्य संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। सम्मान-पुरस्कार में आपको महात्मा बुद्ध  सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान मिले हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”