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प्रज्ञा

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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प्रज्ञान्मोमुख एक लौ शिखा,
निकली जग आलोकित करने
काले-काले ध्रीष्ट धूम्र ने,
तमपाश कसा कलंकित करने।

थी प्रज्जवलिका ज्ञान पथ पर,
तमस के मन को यह न भाया
अत्याचार निर्दोष पर कर,
आरोप मढ़ कटघरे लाया।

कोई मानवाधिकार न था,
थी न नारीवादी दुहाई
आग यंत्रणा पहन निर्भया,
आँधी रश्मि की बिखराई।

कालिख धुम्र परास्त हुआ पर,
लूट गयी प्रज्ञा तरुणाई।
अब अन्यायी तम अस्त हुआ,
स्नेह स्निग्ध पा जगमगाई॥

परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।