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बनाओ रीति-रिवाज़ नए

बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
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दशहरा विशेष…

राम के गुणों से युक्त,
अब रह गए दो-चार हैं
रावण के गुणों से युक्त,
अब लाखों यहाँ दशानन है।

भाई से भी धोखा करते,
बैर, विरोध व अत्याचार है
मन का रावण मिटता नहीं,
कागज का रावण जलाते हैं।

नारी से जो भी करते अनाचार,
वो जिन्दा रावण घूम रहे हैं
छल व भ्रष्टता का आतंक मच रहा,
रावणों का ही तो बोल-बाला है।

बनाओ सब रीति-रिवाज नए,
पापी पुतले खत्म कर देते हैं
द्वेष, घृणा का परचम लहराया,
कलुषित मन गहरा गए हैं।

आत्मविश्वास है नहीं किसी में,
सब भूमिका अपनी बदल लेते हैं।
सत्य-निष्ठा की शपथ लीजिए,
धर्म, कर्म का साथ अब लेते हैं॥