कृति केंद्रित विमर्श…
भोपाल (मप्र)।
बच्चों के लिए साहित्य सृजन करते समय रचनाकारों को उनके स्तर पर जाकर बच्चों के मनोकूल सृजन करना चाहिए। बच्चों के साहित्य में आधुनिकता के बोध के साथ हमारी पुरातन संस्कृति और राष्ट्रप्रेम का बोध होना भी आवश्यक है।
यह उद्गार साहित्य अकादमी, मप्र के निदेशक डॉ. विकास दवे ने साहित्य अकादमी पुस्तकालय सभागार में पाठक मंच द्वारा मनोज जैन ‘मधुर’ की कृति ‘बच्चे होते फूल से’ पर आयोजित परिचर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।
आरम्भ में मंच संयोजक घनश्याम मैथिल ‘अमृत’ ने मंचस्थ अतिथियों ‘मधुर’ एवं महेश सक्सेना (निदेशक बाल साहित्य शोध केंद्र भोपाल) का स्वागत किया एवं महत्वपूर्ण पुस्तकों के विमर्श में मंच की भूमिका बताई। उपस्थितजनों ने कृति केंद्रित विमर्श में भाग लेते हुए इन बाल कविताओं के विषय एवं शिल्प पर विस्तार से अपनी बात रखी। भाग लेने वाले प्रमुख रचनाकार डॉ. अभिजीत देशमुख ने ‘मधुर’ की यात्रा से जुड़े अनेक अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार जैन ने विमर्श में बाल साहित्य के आवश्यक तत्वों पर बात रखी। महेश सक्सेना ने प्रस्तुत कृति को बाल मनोविज्ञान के अनुरूप एक आवश्यक कृति निरूपित किया।
पुस्तक पर बी.एल. गोहिया, रमेश नंद, शेफालिका श्रीवास्तव, राजकुमार बरुआ और मानसी जैन आदि ने भी विचार व्यक्त किए।
‘मधुर’ ने आगे भी बाल साहित्य सृजन जारी रखने की बात कही। वरिष्ठ साहित्यकार अशोक निर्मल ने सभी का आभार प्रकट किया।