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बीतता हुआ साल

दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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कभी हँसी कभी आँसू,
कभी खामोशी, कभी बातों का समंदर
जीवन के कई रंग,
दिखा गया बीतता हुआ साल।

कुछ रिश्ते गहरे हुए,
कहीं बढ़ गई दूरियाँ
हर एक पल हर मोड़ पर,
सबक दे गया बीतता हुआ साल।

कभी सफलता की मिली तालियाँ,
कभी असफलता की तन्हाइयाँ
गिरने और संभलने का तरीका,
सिखा गया बीतता हुआ साल।

किसी अपने का साथ छूटा,
कभी थाम लिया किसी ने हाथ
उम्मीदों के साये में जीना,
सिखा गया बीतता हुआ साल।

किताब के पन्ने की तरह पलट गया,
हर पन्ने की अपनी कहानी थी
हर शख्स कहानी का किरदार,
समझा गया बीतता हुआ साल।

खुशियों की मधुर स्मृतियाँ,
कभी दु:ख का घना अंधकार
हर हाल में जीना पड़ता है,
यह सिखा गया बीतता हुआ साल।

जो बीत गई सो बात गई,
आने वाला कल अपना है।
नव-वर्ष का बढ़कर करो स्वागत,
कहता है बीतता हुआ साल॥