ममता सिंह
धनबाद (झारखंड)
*****************************************
भाव से श्रीराम हैं मिलते, भाव ही से रावण,
भाव में सब जीव बसे, भाव बिना नहीं जीवन।
भाव ही सबका मूल है, भाव बिना सब अभाव,
भाव से पूजा, भाव से भक्ति, भाव बिना नहीं शक्ति।
भाव से श्रद्धा भाव से सम्मान, भाव बिना होता अपमान,
भाव को न दूषित कीजिए, भाव से करें सब लोग सम्मान।
भाव से अपना भाव से पराया, भाव से दुलार सब सम्पन्न,
जान लो साथियों इसका मूल, भाव बिना है सब विपन्न।
अपना काम बनता न सोचो, दूसरों का भी तुम कुछ सोचो,
स्वार्थ भाव को निज दूर रखें, मिले जिसमें खुशी को खोजो।
मन में राम तन में राम, दुनिया के कण-कण में राम,
अच्छे-बुरे सारे कर्मों को, दर्पण बन कर बस देखें राम।
सबसे बुरा अपना छुप जाए, मन से न छुपे कोई,
जो दिल से हम साफ हैं, छुपने की बस चाहत न होय।
भाव-भाव ही सब कहै, बस भाव ही नहीं देता कोय,
जो भाव हम खुद को चाहें, दूसरों को भी वो ही देय॥