पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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कृष्ण जन्मोत्सव विशेष…
‘ऊधो मोहि बृज बिसरत नाहिं’… यदि आपको भी बृजभूमि का ऐसा ही एहसास करना है, जो आपकी स्मृति पटल पर आजीवन जीवंत रहे और दिलो-दिमाग पर कभी भी फीका न पड़े, तो एक बार कृष्ण जन्माष्टमी यानी बृजभूमि पर अवश्य जाएँ। यूँ तो मथुरा वृंदावन या पूरी बृजभूमि में पूरे वर्ष कृष्णमय वातावरण ही रहता है, लेकिन सावन का महीना आते ही यहाँ की रंगत बदल जाती है। बारिश होने के कारण इन दिनों पूरा वृंदावन जैसे जीवंत हो उठता है। चारों तरफ बस हरियाली ही दिखाई पड़ती है।
हरा-भरा वृंदावन मन को मोह लेता है। जैसा सभी जानते हैं कृष्ण का जन्म देवकी और वासुदेव के घर मथुरा की जेल में हुआ था। बच्चे को उसके मामा द्वारा मारे जाने से बचाने के लिए उसे यमुना नदी के उस पार गोकुल ले जाया गया, जहां उनका नंद और यशोदा जी ने पालन-पोषण किया।
वैसे, तो सावन का महीना भगवान् शिव को समर्पित है, परंतु मथुरा वृंदावन में सावन में राधा- कृष्ण के हिण्डोला दर्शन की भक्तिमय धूम रहती है। अद्भुत मनमोहक हिण्डोला दर्शन के लिए दूर-दूर इलाकों से राधा-कृष्ण को आराध्य मानने वाले वैष्णव और साधु-संतों की टोली आने लगती है। फूल बंगला के दर्शन कर भक्त अपने को धन्य मानते हैं और ठगे से रह जाते हैं। सामान्य दिनों की अपेक्षा सावन-भादो के महीने में भक्तों की संख्या दो-तीन गुना तक बढ़ जाया करती है।
इन दिनों बृजभूमि में बहुत रौनक होती है। यहाँ पर बड़े पैमाने पर गौपालन का काम होता है। यह एक प्रकार का कृष्ण गाथा का हिस्सा भी है, क्योंकि भगवान् कृष्ण स्वयं गाय चराया करते थे।
उनकी लीलाओं में गाय और बाँसुरी का महत्वपूर्ण स्थान है। वृंदावन का शाब्दिक अर्थ है-वृंदा या तुलसी का वन, शायद वृंदावन ही अकेली ऐसी जगह है, जहां तुलसी के पौधे नहीं पेड़ भी दिखते हैं। इतने बड़े-बड़े पेड़ हैं कि लड़कियाँ झूला डाल कर झूलती देखी जा सकती हैं।
पूरे वर्ष वहाँ के लोगों को कृष्ण जन्माष्टमी का इंतजार रहता है, क्योंकि कृष्ण जन्माष्टमी आने के महीनों पहले से ही रौनक का बसेरा हो जाता है। जन्माष्टमी की तैयारी सावन लगने के साथ ही शुरू हो जाती है, चूंकि सावन से ही साधुओं और वैष्णव का आना शुरू हो जाता है, इसलिए जन्माष्टमी पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जमा हो जाती है। यद्यपि, इन लोगों की पूजा पद्धति एक-दूसरे से भिन्न होती है।
सच तो यह है, कि सावन के महीने में बृजभूमि में आने पर न केवल देश के अलग-अलग हिस्सों के साधु-संतों के दर्शन होते हैं, वरन् भक्ति और आस्था के महाकुंभ को भी यहाँ देखा जा सकता है।
ऐसा भी कहा जाता है, कि पहले के दिनों में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन अंधकार को प्रतीकात्मक रूप से दूर करने के लिए पूरी रात घी के दीपक जलाए जाते थे, जिसके कारण लोग कृष्ण जन्माष्टमी को मथुरा वृंदावन की दीपावली भी मानते हैं। अब दीपक के स्थान पर तमाम मंदिरों और घरों को बिजली की रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है। चूंकि, यह सूचना तकनीकी का दौर है, इसलिए जन्माष्टमी का त्यौहार अब काफी हद तक वैश्विक बन चुका है।
भले ही यहाँ गुजरात और महाराष्ट्र की तरह दही-हांडी का भव्य कार्यक्रम नहीं होता है, परंतु जन्माष्टमी पर पूरी बृजभूमि में भक्ति और श्रद्धा में ओत-प्रोत भक्तों की टोलियाँ भक्तिभाव में सराबोर होकर मनमोहक नृत्य और गीत प्रस्तुत करते रहते हैं। इन सबको जीवंत रूप में देखने के लिए जन्माष्टमी के अवसर पर मथुरा वृंदावन आएंगें तो कृष्ण भक्ति भाव की पवित्र ठंडी हवा के झोंके से आपका मन प्रसन्नचित्त हो उठेगा।