हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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विश्व पर्यावरण दिवस (५ जून) विशेष….
जल रही धरती,
ज़लज़ला आ रहा
प्रकृति का यह तांडव,
मन घबरा रहा।
साँस लेने के लिए जरूरी हवा,
वह भी दूषित व जहरीली हो चुकी
बचाओ इस धरती माँ को,
मन घबरा रहा।
हरित क्रांति व ग्रीन हाउस को, सपने मत बनाओ
पेड़ लगाओ, आओ आगे आओ प्रकृति बचाओ,
ईंट पत्थरों के ज़रा-से लालच में
बेच रहे प्रकृति
तभी तो मन घबरा रहा।
अगर ऐसा चलता रहा,
तो ना तो जंगल रहेंगे-ना धरती
अरे हम प्राण-वायु के लिए दर-दर भटकते रहेंगे,
आज नहीं जागे तो देर हो जाएगी।
क्योंकि पेड़-पौधों से जीवन नहीं तो कुछ भी नहीं,
इसलिए मन घबरा रहा…॥
