सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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दीप जलें, मन महके (दीपावली विशेष)…
मन सुमन पुलकित है धरा पर दीप का त्यौहार है,
वन बाग उपवन वाटिका
शोभित नवल श्रृंगार है।
उत्साह, प्यार, उमंग, वैभव
से सुशोभित द्वार है,
जगमग धरा होती सकल
आलोक का संसार है।
सारा जगत है हर्ष में पर
कुछ के घर अंधकार है,
बन दीप खुद कर दें उजाला
यह बात बस स्वीकार है।
कुछ दीप उनके घर जलाएँ,
ज्योति का विस्तार है।
कुछ समय उनके साथ हों,
हमको मिले संस्कार हैं॥
