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‘मित्रता’ नवल प्रभात

डॉ. विद्या ‘सौम्य’
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
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मित्रता-ज़िंदगी…

‘मित्रता’ जीवन का नवल प्रभात,
सर्द सुबह के, रेशमी धूप के जैसे-
तन-मन सहला जाता है मित्र,
तुहिन कणों की बूँद के जैसे-
मन को भा जाता है मित्र,
मकरंद से, रिसता अमृत जैसे-
अमूल्य-वर, हो जाता है मित्र।

‘मित्रता” जीवन का परम उल्लास,
सुबह, दुपहरी और सांझ बन
बसंत-सा छा जाता है मित्र,
तरु से लिपट रोती, लता के जैसा-
हमदर्द भी बन जाता है मित्र,
रुदन, हास-परिहास क्षणों में
मन को बहला जाता है मित्र।

‘मित्रता’ जीवन का चरम विकास,
अंतर्मन में, व्याप्त निशा को
धो देता बन, प्रकाश है मित्र,
चेतन से बन, स्वयं अचेतन
सिखा जाता ,नूतन राग है मित्र।
रण-क्षेत्र में, वीरों के जैसा-
हो जाता है, स्मृति विशेष मित्र॥