संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
*************************************
खो गया बचपन,
धीरे-धीरे जवानी भी
खिसकती जा रही
ज़िंदगी का नया पड़ाव,
सामने आ खड़ा है
इसलिए दुःखी मत हो
मेरे मन…।
थोड़ा-सा हँस दे,
थोड़ा-सा रो ले
थोड़ा-सा दौड़ ले,
थोड़ी-सी मस्ती कर ले
बेकार ही वक्त गंवाया,
बेकार ही बड़े हो गए
इस तरह की बातें बेतुकी
सोचना बंद कर दे,
मेरे मन…।
सारे बंधन अब तोड़ दे,
ध्यान रहे यह दुनिया
तुम्हारे लिए है
और तुम्हारी है,
तुम दुनिया के लिए नहीं
यह मत सोच कि
ये स्कूल का बस्ता है,
जो सारा दिन कंधे पर
लेकर घूमते रहो,
मेरे मन…।
यह रोज की सुहानी सुबह,
यह हल्की-हल्की ठंडी हवा
यह पंछियों की मधुर धुन,
सारी कायनात का आंनद
शाम हल्की-सी बारिश की बूँदें,
पहली बारिश में भीगी मिट्टी की
सौंधी-सौंधी सी खुशबू,
सुहानी रातों में ठंडी हवा के झोंके
साथ में जीवन की खूबसूरत यादें,
अब कर ले जवाँ…
मेरे मन…।
अब भी वक़्त है,
जीने के लिए।
जी भर कर जी ले,
मेरे मन…॥