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वाल्मीकि ऋषि को नमन

बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
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आज हम उनको करें प्रणाम
वाल्मीकि समक्ष नगण्य हैं हम,
सीताराम की गाथा से
जिन्होंने दिया जग को उजियारा।

शब्दों का दीप उन्होंने जलाया
आस्था, प्रेम की बहाई धारा,
वाल्मीकि का पुण्य नाम
जग में सदा रहेगा अमर।

सृजन से किया जग आलोकित
जंगल में उन्होंने किया तप,
सत्य को खोजा मिला नहीं तब तक
पहुंचा दिया वो हर जन तक।

राम कथा का रूप सजा कर
कवि बने पहले जग में,
प्रेम, धर्म की बात बताई
सत्य रास्ता दिखलाया वन में।

जग में गुंजा दिया गीत उजाला
भक्ति की गंगा बहाई सब में,
जय-जय करते हैं वाल्मीकि नाम की
कथा लिखी उन्होंने श्री राम की।

अंधकार को दूर हटाया
स्थिर मन, सुदृढ़ तनधारी,
तन को कर लिया तरु का तना
तिल भी डिगा नहीं आपका मना।

रत्नाकर से बने थे ऋषि,
दृढ़ संकल्प से अंधकार हारा।
नई सोच से आगे बढे़,
दिशा के साथ किनारे बदले॥