बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
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वृक्ष तुम्हें कह रहे मानव,
क्यों कर रहा अत्याचार ?
ले हाथ कुल्हाडी मुझे,
क्यों काटे बारम्बार ?
कट जाऊंगा में अगर,
तुम छाया कहाँ से लाओगे ?
बिन छाया तुम सभी,
लू के थपेड़े खाओगे।
निज स्वार्थ को पूरा करने,
कल कारखाने लगाते हो
रेल पटरियाँ बिछाकर तुम,
मेरा घर क्यूँ जलाते हो ?
कहाँ गये मेरे जंगली जानवर,
कहाँ गयी वो अमूल्य दवा
कहाँ गयी जंगली जातियाँ,
कहाँ गयी वो ठण्डी हवा ?
वृक्षों की हरियाली में,
पक्षी विचरण करते हैं
मेरी हरियाली मिटती तो,
सुनहरे पक्षी भी मरते हैं।
यदि इसी तरह कटता रहा मैं,
तो फल-फूल कहाँ से लाओगे ?
मंहगी लकड़ी तो कोसों दूर,
जंगली औषधियाँ नहीं पाओगे।
कान खोलकर सुन मानव तू,
‘बबिता प्रकाश’ की पुकार।
सफल जीवन बनाना तुझे तो,
कर वृक्षों से तू प्यार अपार॥