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शुचिता, सिद्धि व शिक्षा का महापर्व ‘बसंत पंचमी’

ललित गर्ग

दिल्ली
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वसंत पंचमी विशेष…

बसंत पंचमी या श्री पंचमी हिन्दुओं का प्रमुख सांस्कृतिक एवं धार्मिक त्यौहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु की पूजा की जाती है। यह प्रकृति के सौंदर्य, नई शुरुआत, और सकारात्मकता का उत्सव भी है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा से मन में शांति और ज्ञान का संचार होता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में शिक्षा, कला, सौन्दर्य और प्रकृति का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन ६ ऋतुओं में बांटा जाता था उनमें बसंत लोगों का सबसे मोहक, मनोरम एवं मनचाहा मौसम था। बसंत पंचमी मन की, जीवन की, संस्कृति की, साहित्य की, संगीत की, प्रकृति की असीम कामनाओं का अनूठा एवं सौन्दर्यमय त्योहार है, जो हर वर्ष माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है।

दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। माता सरस्वती को ज्ञान-विज्ञान, सूर-संगीत, कला, सौन्दर्य और बुद्धि की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि देवी सरस्वती ने ही जीवों को वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि दी थी। इसलिए वसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा की जाती है। माँ सरस्वती की पूजा करने से माँ लक्ष्मी और देवी काली भी प्रसन्न होती हैं।
मान्यता है कि बसंत पंचमी को देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। इसी दिन वह हाथों में पुस्तक, वीणा और माला लिए श्वेत कमल पर विराजमान होकर प्रकट हुई थीं। कहा जाता है कि देवी सरस्वती की पूजा सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने की थी। देवी भागवत में उल्लेख है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द, स्वर व शक्ति की प्राप्ति जीव-जगत को हुई थी। इसी लिए माँ सरस्वती को ‘प्रकृति की देवी’ की उपाधि भी प्राप्त है। पद्मपुराण में माँ सरस्वती का रूप प्रेरणादायी है। धर्मशास्त्रों के अनुसार देवी का वाहन हंस यही संदेश देता है कि माँ सरस्वती की कृपा उसे ही प्राप्त होती है जो हंस के समान विवेक धारण करने वाला होता है। माँ सरस्वती को पीले रंग प्रिय है, मान्यतानुसार पीला रंग सुख-समृद्धि और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। पीला रंग बसंत पंचमी का मुख्य प्रतीक है। पीले रंग को सरस्वती माँ का प्रिय रंग भी कहा जाता है।
बसंत पंचमी के साथ बसंत ऋतु की शुरुआत होती है, जो फसलों की कटाई के लिए अच्छा समय है। फाग के राग की शुरूआत भी इसी दिन होती है। फाल्गुन का अर्थ ही है मधुमास। वो ऋतु जिसमें सर्वत्र माधुर्य ही माधुर्य हो, सौन्दर्य ही सौन्दर्य हो। वृ़क्ष नए पत्तों से सज गए हो, कलियाँ चटक रही हों, कोयल गा रही हो, हवाएं बह रही हो। ऐसे मधुर मौसम में सरस्वती पूजन वसंत की शुचिता एवं सिद्धि का प्रतीक है, एक ऊर्जा है, एक शक्ति है, एक गति है। लोकमन के आह्लाद से मुखरित वसंत ही महक और फाल्गुनी बहक के स्वर इसका लालित्य है, यही इस त्योहार की परम्परा का आह्वान है। यही इसका अलौकिक सौन्दर्य है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था। ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु जी से अनुमति लेकर कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का, तब देवी प्रकट हुई। देवी के हाथ में वीणा थी। भगवान ब्रह्मा ने उनसे कुछ बजाने का अनुरोध किया, ताकि पृथ्वी पर सब कुछ शांत न हो। देवी ने कुछ संगीत बजाना शुरू कर दिया। तभी से उस देवी को वाणी, वीणा और ज्ञान की देवी सरस्वती व वीणावादिनी के नाम से भी जाना जाता है।

देवी सरस्वती ने वाणी, बुद्धि, बल और तेज प्रदान किया। इसी लिए बसंत पंचमी का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। यह ज्ञान, संगीत, कला, सौंदर्यशास्त्र की देवी सरस्वती का त्योहार है। यह अज्ञानता, अविद्या और अंधकार को दूर कर गर्मी, चमक, प्रकाश, माधुर्य, सद्भाव, पवित्रता और प्रसन्नता का संचार करती है।