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श्रमिक हृदय है राष्ट्र का

पवनेश मिश्रा
छतरपुर (मध्यप्रदेश)
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श्रम आराधना…

श्रम की गाथा गाते श्रमिक, जीवन की धुरी सँवारें,
रुधिर-सी बहती करघों पर, साधना की ज्योति उभारें।

सृजन-पथ के रथी अमर ये, जग को गति दे जाते,
विपदाओं के तमस तले भी, स्वेद से दीप उजारें।

हाथों में लोहा फूल बने, ईंटों में सुर गूँजे,
सपनों की सच्ची ज़मीं पर, कर्मशीलता पूजे।

नमन तुम्हें हे जीवन-शिल्पी, श्रम तुम्हारा गान,
तप से तृप्त धरा कहे-तुम हो सच्चे गुणवान।

कांधे पर पत्थर, मुख पर तेज, चरणों में अग्नि-रेखा,
धरा को सींचें श्रमिकजन, जैसे रचें कोई एक लेखा।

कंकण-कण में जीवन भरते, माटी को सौरभ देते,
संघर्षों के सेनापति ये, श्रम की गाथा कहते।

नयन भरे हों स्वप्नों से पर, जाग्रत रहता भाल,
कर्मभूमि में हर श्रमिक है, सृजन-शिव का लाल।

घिसते तृण, गलते पत्थर, फिर भी गढ़ते स्वर्ग,
श्रमिक हृदय है राष्ट्र का, उसका आदर निर्वर्ग॥