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श्राद्ध हमारी श्रद्धा

सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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श्राद्ध, श्रद्धा और हम (पितृ पक्ष विशेष)…

अंधेरे आकाश में अब टिमटिमाते तारों-सी,
कुछ कहानियाँ परिजनों के मन में छुपी-सी
वह कोई कर्मकांड नहीं, दिल के हैं एहसास,
कहें श्राद्ध परन्तु यही रिश्तों में श्रद्धा खास।

जब बंद हो ऑंखें, यादों का गाँव बस जाता,
स्वर्गवासियों का स्नेहाशीष भाव याद आता
उनकी वे बातें, लाड़, डांट में छुपा अपनापन,
वे क्यों कर जाते हमें छोड़कर परलोक गमन ??

मृत्यु जीवन का अटल सत्य श्राद्ध समझाते,
जो पूर्वज हमें कभी हाथों से निवाला खिलाते
अब हम उनके नाम की भोज्य थाल सजाते,
हम श्रद्धा से, श्राद्ध संस्कार की प्रथा निभाते।

श्राद्ध जीवन चक्र समझने का अवसर देते,
कर्मकांडों से बने पुल, हमें जड़ों से जोड़ते।
वैसे आत्मा कहीं नहीं जाती बस तन बदलती,
गौर से देखो पुरखों की छवि हममें झलकती।

श्राद्ध संस्कार जो पंचभूत-प्रकृति‌ से जोड़ता,
पशु-पक्षी, जीव-जंतु पर दया को मन मोड़ता
ब्राह्मण और दीन-हीन को भोजन है मानवता,
बहन-बेटियों को बुलाने से बढ़ती है सम्पन्नता।

श्राद्ध का भोजन, श्रद्धा का प्रसाद कहलाता,
श्राद्ध स्मृति दिवस, हो ऋणों से मुक्ति दर्शाता।
श्राद्ध, श्रद्धा से आत्मा को परमात्मा बनाता,
पितृ हो तृप्त, श्रद्धावान मन बस यही चाहता॥