आचार्य संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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श्री राम देव का पुत्र हूँ, कहूँगा-जय श्री राम,
शिव का हूँ वरदान मैं, जागृत है अभिमान
माँ सुभद्रा (माधुरी) जन्म दियो, उदित सूर्य विहान,
सिंदरी (धनबाद) मातृभूमि को कोटि-कोटि प्रणाम।
कई गुरुओं की शिक्षा ने दिया दिव्य ये ज्ञान,
पितृ पक्ष में नमन सभी को, करता हूँ गुणगान
एक-एक गुरु दीक्षा का कैसे करूँ बखान ?
कभी गुरु, तुलसी दिखें, कभी कबीर, रसखान।
कोमल बालक के हृदय में जाति-धर्म अनजान,
बाल्य काल चेहरे पर मधुर-मधुर मुस्कान
सीखा जन्मभूमि में सब इतिहास, भूगोल, विज्ञान,
उच्च शिक्षा तक नहीं जगा धर्म- जाति संज्ञान।
श्री रामदेव थे पिता हमारे मानव बड़े महान,
मजदूरों के प्रतिनिधि थे, करते कष्ट समाधान
मजदूरों की मृत्यु पर आक्रोशित, करें रोजी-रोटी निदान,
परिजन के शोक संताप को हरते, दूर करें व्यवधान।
मजदूरों के हक़ की खातिर जेल गए श्रीमान्,
मालाओं से लाद दें कारखाना श्रमिक आवाम
ईमान, तपस्या, मजदूरों के हित स्वयं हुए नीलाम,
श्रमिक संघ के ऐसे नेता नहीं मिलेंगे आम।
३६ वर्ष की अल्पायु में किए बड़े कई काम,
संघर्षों से करते रहे, प्रबंधन की नींद हराम,
नई दिल्ली एम्स में उनके अंतिम प्राण विराम,
चीख-पुकार हुई घर-बाहर, मचा खूब कोहराम।
इच्छा अंतिम शेष थी हो ‘राजघाट’ अंतिम संस्कार,
भ्राता भरत, इंद्रदेव, कृष्ण देव ने इच्छा की साकार
दुनिया के लिए जीने वालों का हश्र यही है यार,
बिलख गए छोटे बच्चे, पत्नी की आँखों में अश्रुधार।
बच्चे विनती आज कर रहे, ईश्वर खोलें स्वर्ग के द्वार,
पिंड दान, तर्पण-अर्पण से मात पिता का हो उद्धार।
गया जी के अंतिम पिंड दान से तृप्त पुरखें हजार,
शत्-शत् बार प्रणाम हमारा, नमन हजारों-हजार॥
परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे आचार्य संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। सम्मान-पुरस्कार में आपको महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान मिले हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”