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श्रेष्ठ विद्यार्थी और चिंतन के प्रतीक गणेश जी

राधा गोयल
नई दिल्ली
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गणेश जी के रूप में एक बहुत महत्वपूर्ण संदेश छिपा है। श्री गणेश के रूप में हमें एक श्रेष्ठ विद्यार्थी और चिंतक के दर्शन होते हैं। उनका स्वरुप मोहक है। सरल है, व्यापक भी है। उनकी व्याप्ति अनंत है। वे कलाकारों के प्रिय पात्र और बच्चों के प्रिय देवता हैं। वे जिज्ञासुओं के लिए कौतूहल का विषय हैं। वे पार्वती नंदन हैं। शिव द्वारा शिरच्छेद करने के बाद उनका स्वरुप और निखर आया है। यदि इसे एक रूपक ही मान लिया जाए तो भी यह स्वरूप मोहक है, पूजनीय है। अपनी मेधा और तार्किकता के फलस्वरूप भी वे प्रथम पूज्य हैं। वे भारतीय मनीषा के प्रेरक तत्व हैं। वे श्रेष्ठ विद्यार्थी हैं। इसके पीछे उनके स्वरुप को ही देख सकते हैं। उनकी आँखें छोटी हैं, यानी वे सूक्ष्म दृष्टि के स्वामी हैं। यह दृष्टि एक अनुसंधानक के पास ही होती है।उनके कान बड़े हैं, जो यह बताते हैं कि वे अधिक से अधिक श्रवण करना जानते हैं।
उनका पेट बड़ा है। यह उनकी ग्रहण क्षमता का परिचायक है, यानी जो सुनो… उसे पेट में पचा लो। उनके हाथों में अंकुश है, जो आत्म नियंत्रण का सन्देश देता है।
वे वरद मूर्ति हैं,जो अभय प्रदान करता है। कल्याण उनकी भावना है। ऐसे ही मूषक उनका वाहन है जिसकी गति धीमी है;जो लक्ष्य के प्रति सचेत और सावधान करते हुए चलने को प्रेरित करती है।
मोदक उनको अति प्रिय हैं। इसमें भी एक संदेश छिपा है कि जुड़कर रहने में ही मिठास है। बेहद बारीक बूँदी को लड्डू का आकार देकर जब बाँध दिया जाता है, तो वो मोदक सबको बेहद स्वादिष्ट लगते हैं। यही बात संबंधों पर भी लागू होती है।

गणेश यूँ ही नहीं हैं, गणेश या गणपति का अर्थ गण के नायक से है। वे इस देश के स्वातंत्र्य के प्रेरणापुरुष की प्रेरणा रहे हैं। उनके इस कल्याणकारी स्वरुप का एक विद्यार्थी के रूप में, पथ प्रदर्शक के रूप में, तथा एक अनुसंधानक के रूप में गणेश का भाव सृजन और आराधन करें।