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साहित्य के शौर्य ‘दिनकर’

आचार्य संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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राम नाम धारी, हिन्दी प्रभारी वो,
हिन्दी साहित्य के शौर्य पुरुष वो
उदित नवल दिव्य महा सूर्य वो,
बेगूसराय सिमरिया जन्म भूमि वो
महा कवि थे, ओज महान वो।

आधुनिक काल के राष्ट्र कवि,
प्रगतिवाद, राष्ट्रवाद के मुखर कवि
कुरुक्षेत्र, हाहाकार, हुँकार जाने सभी,
साहित्य अकादमी, पदम् विभूषण, ज्ञान पीठ पाए तभी
निर्भीक, स्वतंत्र कवि पाया सांसद सम्मान भी।

हिन्दी को राष्ट्र भाषा से कम न किया स्वीकार,
आपके चिंतन, संघर्षों से हुई हिन्दी अंगीकार
शब्दों में ऐसी ताकत, हो ब्रिटिश में चीख- पुकार,
अंग्रेज त्राहिमाम थे करते, मचता था हाहाकार
जन-जन में आती जागृति, भारत की जय- जय कार।

चाहे उन्हें हम सूर्य कहें या मानें हम भास्कर,
शब्द-छंद के तारतम्यमें हिन्दी रखते गूँथकर
प्रथम संसद में राज्य सभा के सांसद बने थे ‘दिनकर’,
भारतीय हिन्दी साहित्य के उदित सूर्य थे ‘दिनकर’
आधुनिक साहित्य के महाप्रतापी राष्ट्र कवि थे ‘दिनकर।’

हिन्दी के प्राध्यापक से पाया कुलपति का प्रभार,
भारत सरकार ने बना दिया हिन्दी भाषा सलाहकार
सच्चे सेवक के रूप में, किया हिन्दी का भाषा उपकार,
संसद में भी गलत नीतियों पर करते सरकार का प्रतिकार
शब्द सृजक थे उच्च कोटि के, करते शब्द बाण प्रहार।

हिन्दी को राष्ट्र भाषा के दर्जे में उनका भी उपकार,
ऐसे युगदृष्टा, स्वाधीनता संग्रामी को हो नमन मेरा स्वीकार
आधुनिक युग में यहाँ तक पहुँची यह आपके ही विचार।
हिन्दी भाषा शीर्ष पर पहुँचे सबमें हो यह सदविचार,
जय हिन्दी, जय भास्कर, जय रविकर, जय जय दिनकर॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे आचार्य संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। सम्मान-पुरस्कार में आपको महात्मा बुद्ध  सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान मिले हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”